आ अब लौट चलें


||आ अब लौट चलें||



 


उठो जागो

मोड लो नदियों की धार अपनी ओर

ले चलो वापस उस भटकी हुई जवानी को

जो खो गई थी कहीं गैरो की भीड़ में

फिर लगाओ खुशियों के मेले हर गांव में

दे डालो धुन्याल अपने इष्ट देबों को

भर दो प्राण उन पत्थरों में जो

बाट जोह रहे हैं तुम्हारी वर्षों से।

फिर तुम्हारी कोशिश से

हरी होगी धरती वो

जीवंत होगा गांव वीराना

लगा दो मंडान हर आंगन में

कर डालो आह्वान पांडु पुत्रों का

फिर से करो पोषण उस सभ्यता संस्कृति

और भाईचारे का को रूठ गया था हमसे

जाने अंजाने में

या पेट के खातिर

इन शहरों में वर्षों पहले ।





 


 


शैलेन्द्र भंडारी "दीनबंधु "