||आ अब लौट चलें||
उठो जागोमोड लो नदियों की धार अपनी ओरले चलो वापस उस भटकी हुई जवानी कोजो खो गई थी कहीं गैरो की भीड़ मेंफिर लगाओ खुशियों के मेले हर गांव मेंदे डालो धुन्याल अपने इष्ट देबों कोभर दो प्राण उन पत्थरों में जोबाट जोह रहे हैं तुम्हारी वर्षों से।फिर तुम्हारी कोशिश सेहरी होगी धरती वोजीवंत होगा गांव वीरानालगा दो मंडान हर आंगन मेंकर डालो आह्वान पांडु पुत्रों काफिर से करो पोषण उस सभ्यता संस्कृतिऔर भाईचारे का को रूठ गया था हमसेजाने अंजाने मेंया पेट के खातिरइन शहरों में वर्षों पहले ।
शैलेन्द्र भंडारी "दीनबंधु "