कोरोना संकट में साईबर संकट


||कोरोनाकाल में सर्वाधिक सक्रीय हुए साईबर ठग||


आजकल और कोरोना काल में तो साईबर ठगो का गिरोह बहुत ही ज्यादा सक्रीय हो गया है। आम तौर पर जो लोग इन साईबर ठगो की चपेट में आते है वे अपनी बात किसी को बताते नहीं है। साईबर ठगो की गिरफ्त में आने वाले कुल मे से एक फिसदी लोग ही सामने आते है, एफआईआर लिखवाते है आदि। अर्थात 99 फिसदी लोग शर्म के मारे अपनी गलती किसी को नहीं बताते। यहां हम बात कर रहे हैं फेसबुक के मैंसेन्जर पर आने वाले मैसेज की, जिसके द्वारा साईबर ठग लोगो तक पंहुचता है और एक दूसरे परिचित से पैसे मांगता है।


होता कैसे है। पहले वह ठग फेसबुक आईडी से एक दूसरे को मैसेज भेजता है। मैसेज उन्ही को भेजता है, जो हैक की गई आईडी के नजदीकी हो, या अच्छी तरह से पहचानते हों। पहले साईबर ठग अमुक व्यक्ति की आईडी हैक करता है। फिर वही ठग जिसकी आईडी उसने हैक की है, उसी के परिचितो तक पंहुचता है। मैसेज भेजता है। आशल-कुशल पूछता है। फिर पैसे की मांग करता है। यह वाकाया लेखक के साथ भी हुआ है। इससे पहले हजारो लाखों लोगो के साथ भी हुआ है। जैसे लेखक के साथ हुआ वैसे ही अन्य लोगो के साथ भी हुआ। अन्तर इतना था कि लेखक इस साईबर ठग की चपेट में नहीं आ पाया। 


हुआ कैसे? लेखक के प्रिय शिक्षक व संरक्षक मौजूदा समय में राजकीय महाविद्यालय ब्रहमखाल के प्राचार्य प्रो॰ रूकम सिंह असवाल की फेसबुक आईडी से अलसुबह लेखक को फेसबुक के मैसेन्जर से मैसेज आता है, हैलो? इसी पर लेखक को संदेह पैदा हो गया था। लेखक ने लिखा गुरूजी सादर प्रणाम। जबाव आया कि कैसे हो। फिर वह हैकर पूछने लगा कि कहां हो। फिर लिखता है कि हैलो। क्या कर रहे हो। कहां हो आजकल। मुझे तुम से छोटा काम था। 20 हजार रूपय उनके खाते में डाल दो, तुरन्त डाल दो, बहुत ही जरूरी है आदि आदि। यह सारे मैसेज कोई भी गुरू या संरक्षक अपने शिष्य या बेटे को नहीं भेजता है। लेखक इन सभी चीजों को समझने के लिए इस ठग के साथ जुड़ा रहा। इस तरह लेखक की पकड़ में वह हैकर आ पाया।


लेखक ने जब इस ठग से खाता नम्बर मांगा तो वह भी श्री असवाल के नाम से ही था, किन्तु पेटियम बैंक में, आईएफएससी कोड भी था, बगैरह। कहने का तात्पर्य है कि यह सब आनलाईन भुगतान की एक कड़ी से जुड़े साईबर ठग है। इन्होंने पहले श्री असवाल की फेसबुक आईडी हैक की, फिर उनके बैंक खाते तक पंहुच गये, बैंक खाते को स्वयं के पेटियम बैंक से मिलान कर दिया। अर्थात जैसे आनलाईन बैंकिग के लिए पेटियम बैंक है। उसी तरह का इनका अपना ही बैंक है। जिसमें ये ठग किसी की भी बैंक आईडी बना देते है। यहां झोल इस बात का है कि जो कानूनी कार्रवाई बैंक बनाने के लिए पेटियम, गूगल पे, फोन पे, भीम ऐप इत्यादि को करने पड़े वही इन ठगो ने भी किया। यानि इन ठगो का इस तरह का अपना बैंक है, जो स्पष्ट तौर पर फर्जी है। जिस पर भारत सरकार के वित्त मंत्रालय व रिजर्व बैक आफ इण्डिया की मोहर होनी है। इसीलिए तो ये ठग पनप पा रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो ये आनलाईन वाले बैंको में गड़मड़ कहां से हो रहा है, जिनके द्वारा ये ठग लोगो तक पंहुच पा रहे हैं। लेखक को श्री असवाल के नाम से जो बैंक आईडी भेजी गई, उसका नाम भी पेटियम है। इसमें फर्क इतना है कि विधिवत पेटियम बैंक और इस फर्जी पेटियम बैंक की स्पीलिंग में अन्तर होगा।


उल्लेखनीय यह है कि आमतौर पर कई बार इन साईबर ठगो के मैसेज नजदिकीयों को भावनात्मक व एकदम सम्मान रूप से मिल जाते है। सो लोग ऐसे हैकरो, साईबर ठगो की चपेट में आ जाते हैं। कुल मिलाकर जो भी मैसेज इस तरह के आ रहे है, उसकी पुष्टी के लिए एक बार अमुक नागरिक को अपने नजदिकी से सम्पर्क बनाना ही चाहिए। मगर बहुत सारे लोग इन साईबर ठगो की चपेट में आ ही जाते है। अतः भारत सरकार के वित्त मन्त्रालय और रिजर्व बैंक आफ इण्डिया को आलाईन बैंकिंग पर पड़ताल करनी चाहिए।



- आनलाईन बैंकिंग पर सन्देह गहराता जा रहा है।
- पैसा लूटने का सरल तरिका बन गये हैं आनलाईन भुगतान।
- भारत सरकार के वित्त मंन्त्रालय व रिजर्व बैंक आफ इण्डिया को गफलत में डाल रहे हैं साईबर ठग।