||कोरोनाकाल : गांव खुलेगा रोजगार, पलायन का मिटेगा नामोनिशां||
कोविड 19 की महामारी मे सबसे बड़ा असर अगर जान के अलावा पड़ा हैं तो शायद जहान पर पड़ा है। क्योंकि जिस तरह से आर्थिकी पर बड़ी चोट सभी गतिविधियों के रुक जाने के कारण हुई हैं, उसकी भरपाई शायद लम्बे समय तक बड़ी मुश्किल से होगी | ऐसे में सरकार उद्योग जगत व तमाम आर्थिकी से जुड़े हुए वर्ग इस मुद्दे को लेकर गंभीर हैं, कि आने वाले समय में किस तरह से परिस्थितियों को बेहतर किया जा सकेगा। आज प्राथमिकता में सारे प्रयत्न इसकी भरपाई में झोके जा रहे हैं कैसे गांव देशों की आर्थिकी को उभारा जा सकता हैं। इनमें रिवर्स माइग्रेशन भी एक ओर समस्या आ खडी हुई है। इसकी गंभीरता को देखते हुए देश के कई संगठनों ने इस आपदा से जुड़ने के लिए अपनी भागीदारी विभिन्न सहायताओं के रूप में की हैं | देश में आई.सी.आई. सी. आई फॉउण्डेशन व बैंक ने व्यापक रूप में उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में गाँव के लोगो के लिए रोजगार जुटाने के रास्ते तैयार करने की एक बड़ी रणनीति तैयार की हैं। इसके तहत तीन मुख्य कार्यक्रम को 5 सामाजिक संगठनों के साथ जोड़ कर काम करने का निर्णय लिया है। इसके पहल के नेतृत्व की जिम्मेदारी हैस्को को दी गयी है।
हैस्को के नेतृत्व में किसान विज्ञान समिति और वाइज महिलाओं के लिए संगठन इस कार्य को बढाने में जुटा है, इनके अलावा ग्रास संस्था , बुढ़ना, रुद्रप्रयाग , कल्पतरु , रामनगर व लोक प्रबंध विकास संस्था , सुनौली, नीर फाउंडेशन, मेरठ व सामाजिक ग्रामीण संगठन चकराता के साथ मिलकर गांव की आर्थिकी व पारस्थितिकी को वापस लाने की कोशिश की है। इसमें एक तरफ पानी की बढ़ती समस्याओं को लेकर और दूसरी तरफ किस तरह से विज्ञान के साथ रोजगार को जोड़कर देखा जा सकता हैं। पहली कडी में हैस्को के उस प्रयोग को विस्तार दिया गया जिसके अंतर्गत गाड़ गदेरों व नदियों में पानी की वापसी सम्भव है और उसके लिए जल छिद्रो , तालाबों ,जलरोधक बांधो व वनीकरण से पानी को संचित किया जाना है। इन सबमें स्थानीय लोगो की ही भागीदारी तय की गयी और अकेले इस कार्यक्रम में 80,000 मानक दिवस का रोजगार लगभग पूरे 1 वर्ष का होगा। इसमें एक तरफ पानी की आवश्यकताओं की आपूर्ति होगी, वही दूसरी तरफ इस कोविड 19 की महामारी के चलते खोते रोजगारो को भी सहारा मिलेगा। इसके साथ ही एक दूसरा बड़ा प्रयोग जिसमें की महिलाओं को केन्द्रित किया गया। उनके लिए इन्ही गाँव के बीच में उपलब्ध स्थानीय उत्पाद हैं, जिनको की प्राय: बाजार नहीं मिल पाता उनके लिए चार क्षेत्रों में महिला समुदायों के लिए सुविधा केंद्र बनाने की योजना है। इन केन्द्रों में सभी तरह के जरुरी उपकरणों को जोड़कर महिलाओं को इसका प्रशिक्षण देने की शुरुआत की गयी हैं।
इसके अलावा महिलाओं से जुडे आम कार्य जैसे कि बायोफार्मिग पानी के काम किचन व फ्रूट गार्डन, ऊर्जा गैस जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं से भी जोडा जाना है। इससे एक तरफ महिलाओं की रोजमर्रा की घरेलू कार्यों से जुडी समस्याओं को रास्ता मिलेगा वहां ही उनके लिये नये रोजगार भी खडे होगें।
इस योजना के तहत सभी तरह के स्थानीय उत्पादों का मूल्य संवर्धन करके उन्हें उचित बाजार देने का कार्यक्रम भी जुडा है। इसमें शुरूआती दौर में यह केन्द्र 10 लाख रूपये की अतिरिक्त आय पैदा करेगा, साथ में महिलाओं के सशक्तिकरण का एक उदाहरण भी होगा । चार केंद्र जैराज, अल्मोडा, रामनगर व निसाला चकराता में खडे किये गये हैं। जम्मू कश्मीर का रयासी जनपद भी इसमें जोड़ा गया हैं। शुरूआती दौर में इनमें 30000 महिलाओं का सीधा जुड़ाव होगा।
रिवर्स माइग्रेशन के कारण रोजगारों से जुडी चुनोती को देखते हुए एक अन्य योजना के अंतर्गत 6 स्थानों में फल पट्टी को लेकर एक बड़ा काम होगा। हर फल पट्टी कम से कम 10 हेक्टेयर में स्थानीय निवासियों को लेकर तय की गई हैं। अकेले जैराज़ क्षेत्र में तीन फल पट्टियां बनेगी उसी तरह मैदानी इलाके में अंतवाड़ा गांव, मुजफ्फरनगर में भी एक फल पट्टी बनेगी। इस तरह से करीब विभिन्न स्थानों में 60 हैक्टयर फल पट्टी का निर्माण होगा। इसमें तकनीकी व प्लांटिंग मटेरियल देने में आम शोध संस्थाओं की भी भागीदारी होगी। इस तरह से करीब विभिन्न स्थानों में 60 हेक्टेयर फलपट्टी शुरूआत में गांव में बनेगी जिसका सीधे लाभ बडे स्तर में होगें ।
प्रत्येक पट्टी में इन कार्यों में सामूहिक निर्णय व भागीदारी होगी। इन फल पट्टियों को तैयार करने में प्रत्येक स्थान में 10,000 मानक दिवस व इस तरह 60,000 मानक दिवसों का रोजगार प्राप्त होगा। आने वाले समय में इनसे होने वाली आय कम से कम 40,000 रूपये प्रति हैक्टयर होगी जो कि कुल 24,00,000 रूपये होगी।
श्री सौरभ सिंह आई.सी.आई.सी.आई फाउंडेशन के चेयरमैन का मानना हैं, कि इसमें मिलने वाले रोजगार सीधे गावों को लाभ पहुचायेंगे और इस प्राथमिकता के प्रयोग को उत्तराखंड में शुरुआत कर भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति अन्य जगह करेंगे। यह योजना समाग्रित कर आर्थिकी व पारिस्थितिकी को साथ जोडा जा सके। आई.सी.आई.सी.आई फाउंडेशन बैंक के लीडर श्री जय सिंह धूमल के अनुसार यह प्रयोग भविष्य में उक्त योजनाओं को अन्य जगह व संगठनों को प्रेरित करेगा। श्री जोखिम कोलाको, श्री शैलेश झा इस कार्यक्रम की रणनीति में भागीदारी करते हुए ग्राम वित्त मॉडल तैयार करेगें।
हैस्को प्रमुख डॉ0 अनिल प्रकाश जोशी के अनुसार आज ऐसे ही प्रयोगों की देश को आवश्यकता है, जिसमें गांव के काम व लाभ सीधे गांव से जुडे हों। जिससे गांवों का विल व स्किल का सीधा लाभ गांव को ही होगा।ये योजनाएं प्रधानमंत्री के उस स्पीच के अनुरूप भी है, जिसमें उन्होंने स्वालम्बन, स्थानीय संस्थान व आर्थिकी पर जोर दिया ।