क्वारंटीन का अर्थ ही अनिवार्य मौत होता था

||क्वारंटीन का अर्थ ही अनिवार्य मौत होता था||

 


ऊर्दू के प्रसिद्ध कथाकार राजिंदर सिंह बेदी की एक कहानी है 'क्वारंटीन'। बेहद मार्मिक। जब प्लेग फैला, तो किस तरह यह शब्द दहशत का पर्याय बन गया। उस वक्त क्वारंटीन का अर्थ ही अनिवार्य मौत होता था। मृतकों की बड़ी तादाद की वजह से उनका आखिरी क्रिया कर्म भी क्वारंटीन के खास तरीके पर अदा होती थी।



 

सैकड़ों लाशों को मुर्दा कुत्तों की लाशों की तरह घसीटकर, बैगेर किसी धार्मिक रस्मों का आदर किए, पट्रोल डालकर जला दिया जाता था। जिनकी पढ़ने की इच्छा हो, इस बार के कादम्बिनी के अंक में पढ़ सकते हैं। यहां आपको महामारियों की दास्तां और उसकी मार्मिकता से उपजे साहित्य पढ़ने को मिलेगा। यह बेहद शानदार अंक हैं और संग्रहणीय भी। अल्बेयर कामू के 'द प्लेग' के कुछ हिस्सों से लेकर अमृतलाल नागर की कहानी एटम बम... पढ़ने को मिलेगी।



 

यह एक ऐसा वक्त है, जब हमारे भीतर की संवेदनाएं भावुक तौर पर जाग भी रही हैं, और मर भी रही हैं। जगत-जीवन की गतिशीलता के कम होने की वजह से 'हार्ड न्यूज़' में सिर्फ कोरोना है, जो लोगों को अवसाद में डाल रहा है। यह एक ऐसा वक्त है, जब रचनात्मकता हार्ड न्यूज की जगह ले रही है। संस्मरण और स्मृतियां/ फीचर, यात्रावृतांत और साहित्य की दूसरी फीचर विधाओं से लोगों का जुड़ाव पहले से बढ़ रहा है। युवा पीढ़ी भी, सॉफ्ट न्यूज़ की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रही है।

 

ऐसे में इस दौर का भरपूर उपयोग करते हुए, जिसे जितना वक्त मिले, साहित्य का रस लीजिए। किस्से/कहानियां सुनिए। संस्मरण लीखिए। वक्त की कमी की वजह से दराज में पड़ी जो किताबें धूल फांख रही थी उनको उठाइए, और पढ़िए। आपके भीतर एकाएक एक सकारात्मकता दौड़ पड़ेगी।