रिवर्स पलायन: पर्यटन उद्योग बनेगा स्वरोजगार का जरिया


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||रिवर्स पलायन: पर्यटन उद्योग बनेगा स्वरोजगार का जरिया||



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पूरी दुनियां कोरोना वायरस के संकट से जूझ रही है। इस वक्त जिन लोगो ने घर वापसी की है उन्हे स्थाई होने में समय जरूर लगेगा, परन्तु वे स्थानीयता को विकास का विषय बनाकर आने वाले दिनों के लिए रोजगार का सृजन करेंगे। यही कोरोना संकट को भुलाने का समय होगा। इस संकट की घड़ी में सुरक्षित रहिए और घर पर ही रहिए।


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कोरानाकाल में लोगो की घर वापसी होनी स्वाभाविक प्रक्रिया है। ऐसा उत्तराखण्ड मंे भी हुआ है। यहां पर भी घर वापसी का क्रम जारी है। क्योंकि ये लोग तो दूर शहरो में सिर्फ रोजी-रोटी कमाने गये थे। इस अन्तराल में वे विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षित होकर महारथ हासिल कर चुके है। जिसका फायदा अब स्थानीय स्तर पर होगा, विशेषकर पर्यटन के क्षेत्र में।


बता दें कि उत्तराखण्ड की जनसंख्या कोई सवा करोड़ के लगभग है। जितनी जनसंख्या किसी देश की भी है। इसी प्रकार यहां बहुतायात में प्रकृति का अनमोल खजाना भरा पड़ा है। जिसका दीदार हर कोई करना चाहता है। जबकि होता ऐसा आया कि राज्य में पर्यटन व्यवसाय ने इसलिए रफ्तार नहीं पकड़ पाई कि राज्य में प्रशिक्षित लोगो का अभाव था। सो घर वापसी से कुछ आस जग रही है। ध्यान रहे कि ऐसे प्रशिक्षित लोगो को सरकार समय-समय पर मदद करे। वैसे भी सरकार ने रिवर्स पलायन करने वाले लोगो के लिए पैकेज की बात की है। यदि सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो राज्य में पर्यटन व्यवसाय कुलांचे भरेगा।


अब बात करते हैं कि यह कैसे हो सकता है? सवाल लाजमी है। मगर घर वापसी कर चुके लोग होटल, यातायात, रेस्तरां, मीडिया व गाईड जैसे कार्यो में कुशल हैं। कुशल इस मायने में कि इनमें से अधिकांश लोग ऐसे व्यवसाय से लम्बे समय से जुड़े रहे है। जिसका प्रयोग वे यहां करना चाहेंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि इस राज्य में पर्यटन उद्योग को पंख लगाने के लिए ऐसे प्रशिक्षित लोगो की आवश्यकता रही है। इसका दूसरा पहलू यह है कि कोरोनाकाल में पंचसितारा संस्कृति से लोगो को संन्देह होने लग गया है। लोग प्रकृति के बीच सुकून का समय बिताना चाहते है। जैसे आमतौर पर पर्यटको को चाहिए।


उत्तराखण्ड में दो तरह का पर्यटक आता है। एक प्रकृति प्रेमी और दूसरा धार्मिक पर्यटक। दोनो प्रकार के पर्यटको के लिए उत्तराखण्ड में मुफिद स्थान है। गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ के अलावा यहां अन्य धार्मिक पर्यटक स्थल भी है। जहां ढांचागत विकास तो हो रखा है, किन्तु ऐसे स्थलो का प्रचार-प्रसार और हाॅस्पीटीलिटी जैसे कार्यो का अभाव बना रहा है। जिसकी भरपाई रिवर्स पलायन के मार्फत बहुत ही सरलता से हो सकता है। धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन का व्यवसाय यहां के विकास पथ पर अग्रसर होगा। घर वापसी कर चुके लोग अपने-अपने क्षेत्रों में ढाबो, होटलो, रेस्तराओं मीडिया व गाईड के कामों को अच्छी तरह से करने वाले है। क्योंकि इन लोगो ने इस व्यवसाय के लिए शहरो में रहकर संघर्ष को जीया है। फलस्वरूप इसके वे लोग राज्य में पर्यटन व्यवसाय को पंख लगाने वाले है। उन्हे बिजनीस का अच्छा ज्ञान है। इसलिए वे बहुत जल्दी तरक्की करने वाले है।


कुलमिलाकार उत्तराखण्ड में पर्यटन व्यवसाय ने यदि तूल पकड़ ली तो भविष्य में राज्य का कोई भी युवा पलायन नहीं करेगा। राज्य में एक तरफ पर्यटन का क्षेत्र है, दूसरी तरफ यहां नगदी फसल भी रोजगार को बढावा देगा। नगदी फसल, तीर्थाटन, प्राकृतिक पर्यटन, पहाड़ी उत्पाद जो शुद्धरूप से जैविक हैं को यहां के पर्यटक व्यवसाय का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा बनेगा। इस तरह से यहां पर्यटन उद्योग को तरहजीह मिलेगी, कृषि का विकास होगा, पहाड़ी उत्पादो को स्थानीय स्तर पर बाजार मिलेगा, नये-नये पर्यटक स्थलो का विकास होगा। इन सभी के लिए मीडिया तकनीकी को भी खूब तरजीह मिलेगी।


कह सकते हैं कि यदि एक लाख लोगो ने घर वापसी की है और उनमें से सिर्फ 20 हजार लोग पर्यटन उद्योग को विकसित करेंगे तो ऐसे में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लगभग दो लाख बेरोजगारो के हाथों स्वरोजगार प्राप्त होगा। जो राज्य के विकास में अहम होगा।



लेखक देहरादून के संभ्रान्त व्यापारी व सामाजिक कार्यकर्ता है। देहरादून विकास प्राधिकरण के पूर्व एक्जूकेटिव सदस्य व स्वर्णकार संगठन के कई बार उच्चस्थ पदो पर रहे हैं।