बड़कोट का मानेन्द्रू भाई



विजयपाल रावत युवा पत्रकार है। वे मौजूदा समय में राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे है। पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष, पूर्व दर्जाधारी एवं कांग्रेस पार्टी के सक्रीय कार्यकर्ता है।


||बड़कोट का मानेन्द्रू भाई||

 

कोरोना महामारी और नेपाल से बिगड़ते रिश्तों के मध्यनजर आजकल पहाड़ के लगभग हर बाजार में नेपाली मजदूरों का अभाव है। दस किलो की अटैची से लेकर गैस सिलेंडर की ढुलाई तक के लिये हम सभी नेपाली मजदूरों पर निर्भर हैं। ऐसे समय में बड़कोट के स्थानीय मजदूर मानेन्द्रू भाई हम सब के लिये आत्मनिर्भर बनने की प्रबल प्रेरणा बन कर उभरे हैं।



 

लगभग पिछले 20 वर्षों से मानेन्द्रू भाई बड़कोट बाजार में नेपाली मजदूरों के बीच अकेले स्थानीय मजदूर हैं। गैस सिलेंडर और घरेलू सामान की ढुलाई से लेकर कठोर श्रमिक मजदूरी तक के सारे काम मानेन्द्रू भाई स्वयं करते हैं।



 

बड़कोट में यमुना नदी के उस पार सुनाल्डी गांव के मानेन्द्र असवाल उर्फ मानेन्द्रू भाई बचपन से कृषि कार्य के साथ साथ मजदूरी भी करते थे। अपने चार भाईयों में दूसरे नंबर के मानेन्द्रू कला वर्ग से 12 वी कक्षा पास है। बड़े भाई सरकारी अध्यापक एवं तीसरा भाई फौज में सेवारत हैं। छोटा भाई बीएड पास कर देहरादून में सरकारी नौकरी पाने के लिये कंप्टीशन की तैयारी कर रहें हैं।



 

मानेन्द्रू भाई के तीन बच्चे हैं। बड़ी बेटी बीएसी ग्रेजुएट है। वह विवाह उपरांत अपने फौजी पति के सहयोग से देहरादून से एमएसी की पढ़ाई पूरी कर रही है। दोनों बेटे सरकारी सीट से देहरादून एवं बड़कोट के पोलीटेक्नीक संस्थानों में सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं।



 

मानेन्द्रू भाई अपने तीनो भाईयों की कृषि भूमि पर मेहनत और लगन से कृषि कार्य करते हैं। वे धान, गेहूं, दाल, और सब्जी टमाटर का उत्पादन करते हैं। किंतु प्रयाप्त सिंचित भूमि ना होने के कारण वे इससे पूर्णतयः अपनी आजीविका नहीं चला सकते हैं। इसलिए वे नेपाली मजदूरों से अधिक परिश्रम और सद व्यवहार के साथ बड़कोट में कार्य करते हैं।



 

हर गैस एजेंसी के ट्रक जब भी बड़कोट या सुनाल्डी गांव के आस पास गैस सिलेंडर वितरित करने आते हैं तो पहला फोन मानेन्द्रू भाई को जरूर करते हैं। और मानेन्द्रू भाई भी सभी जरूरतमंद घरों से खाली सिलेंडर, पैसे और पासबुक लेकर भरा हुआ गैस सिलेंडर सब के घर तक पंहुचा देते हैं। बदले में नेपाली मजदूरों से भी कम लेबर चार्ज लेकर आमजन के लिये संतोषजनक कार्य करते हैं।



 

मानेन्द्रू भाई से जब मैंने यह पूछा की "अगर आप को आर्थिक हालात ठीक करने के लिए कोई और अच्छा रोजगार उपलब्ध हो जाये तो क्या आप मजदूरी करना छोड़ देंगे" ?

 

मानेन्द्रू भाई ने पलट कर कहा उन्होंने बचपन से कठोर परिश्रम किया है और अब यह कठोर परिश्रम ही उनके स्वस्थ्य जीवन के लिए जरूरी बन गया है। उन्होंने बताया की जब तक वे रोज पांच-दस सिलेंडर की ढुलाई नहीं करते तब तक उनको चैन नही आता है।



 

मानेन्द्रू भाई बचपन से धूम्रपान नहीं करते हैं। वे स्थानीय मजदूर के रूप में अधिक विश्वसनीय हैं तो अपने व्यक्तिगत व्यवहार के कारण लोकप्रिय भी। वे अपने काम को संतोषजनक तरीके से करते हैं। उन्होंने अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और संस्कार देकर समाज में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। शिक्षित होकर भी उन्होंने आत्मनिर्भर स्वरोजगार की जो मिशाल रंवाई घाटी में बनाई है वो अनुकरणीय है। रोजगार के लिये महानगरों में पलायन कर गये अच्छे खासे आदमी भी अपने बच्चों को शायद ही इस काबिल बना पाते हों जो गांव के किसान और स्थानीय मजदूर की दोहरी भूमिका निभाते हुऐ मानेन्द्रू भाई ने कर के दिखाया है।



दूसरों पर निर्भरता खत्म कर के ही आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बना जा सकता है। मानेन्द्रू भाई के जज्बे और हौसले को सलाम। ईश्वर उनके बच्चों और परिजनों सहित उनको सुख, समृद्धि, यश और कीर्ति प्रदान करें।