अभिनेता सुशांत की आत्महत्या की खबर- ''एक संभावना का जाना''

|| अभिनेता सुशांत की आत्महत्या की खबर- ''एक संभावना का जाना'' ||


चिड़ियों की ''चहचहाहट और झाड़ियों की झुरमुहाट'' के बीच कौन जान सकता है कि हाहाकार छुपा है?-



कोरोना काल में एक के बाद एक तकलीफ देने वाली खबरों का सिलसिला रुक नहीं रहा है. अभी-अभी अभिनेता सुशांत की आत्महत्या की खबर ने एक पल को स्तब्ध किया. मेरा फिल्म जगत से कोई लेना-देना नहीं पर एक इंसान होने के नाते बस एक टिप्पणी करूंगी कि-



 

बरसों पहले टिहरी के मेरे एक होनहार शिशु मंदिर के सहपाठी ''गिरीश दमीर'' ने मसूरी में आत्महत्या की. उस दिन मैं मसूरी किसी काम से गई थी. बस स्टैंड में वो अचानक मिला. उसकी उदास आँखों में जबरदस्ती की खोखली हंसी मैंने पढ़ ली थी पर मेरी बस छूट रही थी. वो भी आखरी टिहरी के लिए. दुनिया की नजरों में वो एक अमीर पिता का बेहद सफल और मेधावी बेटा था. वो मेरा भाई सरीखा था. उसके पिता मेरे मामा हैं. वो बेहद महत्वाकांक्षी था. उसकी समय से पहले दुनिया जीतने की ललक उसे हम सबों से दूर ले गई. न उसने अपने परिवार को समझा न ही परिवार ने उसकी प्रतिभा को. पूरी टिहरी हिल गई थी उसके सुसाइड से. मुझे बड़ा अफसोस है कि काश उस दिन मेरी बस तुरंत न चलती तो मैं गिरीश से बात कर उसकी अन्दर की हालत जान उसके परिवार को बता पाती. वो बेवकूफ उसी रात को अपने बच्चों और माँ-पिता को विदा कह चला गया. उसके दोनों भाइयों को तो मैंने बताया था पर आज बरसों बाद इस बात का जिक्र कर रही हूँ.



क्योंकि एक युवा का जाना एक ''सम्भावना का मरना'' है. उसके परिवार का खत्म हो जाना होता है. गिरीश दमीर टिहरी वालों और अपने परिवार के लिए एक दुखद सपना है. ऐसे ही अनेकों गिरीश दमीर रोज जा रहे हैं. आज सुशांत का जाना भी एक और महत्वाकांक्षी की मौत है. समाज का बड़ा नुकसान है.



 

दोस्तों! जीवन में ''सफलता के सही मायने'' क्या हैं? इस पर ईमानदारी से सोच-विचार का वक्त भी कोरोना काल का एक बड़ा सबक है. बाहर की ''चकाचौंध के बीच किसी की मनःस्थिति कोई नहीं जान सकता?'' बाहर कुछ और अंदर कुछ? यही इस भौतिकवाद का असल चेहरा है. इस खोखलेपन और चोंचले बाजी से बाहर निकलो. जिंदगी को जिन्दगी की तरह जिओ न कि आवरणों में ढकी परतों की तरह. नहीं तो परिणाम होता है- मानसिक अवसाद! और सिर्फ अवसाद, भय, घोर निराशा और उसके बाद यूँ चुपचाप दुनिया छोड़ देना और अपनों को हमेशा के लिए दुखी कर देना. पर इसको रोका जा सकता है, यदि इस पर बात कर संभावित चिकित्सा के उपायों को खोजा जाये.



 

मैंने अपने दोस्तों से पहले दिन से ही इस बात पर चर्चा की कि प्लीज अपने लोगों से बात करो. अपने भीतर उठाने वाले शोर का कारण तलाशो, लोगों से बात करो क्योंकि दुनिया में इंसान और इंसानी जज्बातों का कोई विकल्प नहीं. हमने यही सोचकर अपने आस-पास लोगों से बात करनी शुरू की थी. मैं न कोई संस्था हूँ और न कोई पड़ाव बस किसी की भी तकलीफ में अच्छा नहीं लगता. सो यह लिख रही हूँ.



 

ये बड़ा संकट का वक्त है. मेरा निवेदन है ''घरेलू हिंसा और घरेलू अवसाद'' को ख़त्म करने को अपने लोगों से बात करिए. उनको सहारा दीजिये. कोई नही टूटेगा आपके मदद के बल पर. उनका हाथ पकडिये और उनसे दो बात कीजये. आप संवेदनशील बनिए! ऐसे शब्दों का प्रयोग न करें जो उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाए प्लीज!



 

हाँ यदि आप खुद को बिलकुल ''अकेला'' महसूस कर रहे हों और आपके आस-पास कोई सुनने-सुनाने को न हो तो प्लीज एक बहन की तरह मुझे फ़ोन करिए पर ऐसे कदम न उठाएँ जैसे सुशांत या मेरे मित्र गिरीश दमीर ने उठाया! लेकिन यदि कोई वैसे ही फ़ोन करेगा तो उसका ईलाज भी मैं जानती हूँ. सो प्लीज मेरा नंबर एक नंबर है ऐसे ही आप भी अपने को दूसरों के लिए उपलब्ध रखिये. शायद हमारी पहल किसी परिवार को बचा सके इस कठिन दौर में. अपने मित्र गिरीश दमीर को न बचा सकी शायद किसी के काम आ सकूँ. लोग आत्महत्या निराशा में करते हैं. गिरीश घोर निराश था. सुशांत और हर आत्महत्या करने वाला निराश ही होता है. फिर भी चाहे कारण कुछ भी हो इंसान को विकल्य तलाशने ही होंगे आप कभी निराश न होना ना! दुनिया को चूमना. हमारे शास्त्र कहते हैं कि धरती हमेशा वीरों का वरण करती है.



 

यही ''शाश्वत मानव धर्म'' है. आपका ''बेशर्त स्नेह'' एक शब्द शयद किसी को जीने का संबल दे दे! धैर्य रखें यह वक्त भी गुजर जायेगा!