एक पुरानी याद, जिसका आखिरी छोर भी मिट गया

||एक पुरानी याद, जिसका आखिरी छोर भी मिट गया||

 



‘नई कहानियाँ’ ज्वाइन करने के बाद मैंने कई योजनाएँ बनाई, जिनमें से एक महत्वपूर्ण स्तम्भ ‘कथा नगर’ था. इसके अंतर्गत हम देश भर के प्रमुख शहरों के बारे में उसी शहर के किसी प्रतिष्ठित कथाकार से लिखवाते थे. स्तम्भ की शुरुआत मैंने ही इलाहाबाद पर ‘प्रश्नों से घिरा : एक ठहरा हुआ शहर’ फीचर से की. यह स्तम्भ बेहद लोकप्रिय हुआ और इसे हिंदी के शीर्षस्थ कथाकारों ने लिखा.

 

जनवरी 1969 अंक में, जिस महीने यह लेखमाला आरम्भ हुई, अशोक कंडवाल की एक कहानी ‘तिनकों का सुख’ मैंने प्रकाशित की जो एक प्यारी-सी प्रेम कहानी है और पाठकों को एक पहाड़ी हिल-स्टेशन के परिवेश में लेजाकर मानवीय रिश्तों की बड़ी अनुगूंज कराती है.

 

अशोक कंडवाल आज अस्सी वर्ष के बुजुर्ग लेखक हैं, मगर उन दिनों वह तीस वर्ष के युवा लेखक थे. उनके परिचय में तब मैंने लिखा था, “अशोक कंडवाल/ जन्म 1939 किमसार (गढ़वाल). देहरादून में शिक्षा. विगत दस वर्षों से बीस-पच्चीस कहानियाँ प्रकाशित. सम्प्रति भारत सरकार के तेल एवं गैस आयोग से सम्बद्ध. आज पचास साल के बाद उम्र के इस पड़ाव पर (जब कि मैं भी चौहत्तर वर्ष का हूँ) उनके साथ आत्मीय मुलाकात होने से मुझे कितनी ख़ुशी हो रही होगी, इसका अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है.

 

छोटे भाई दिनेश कंडवाल, जिन्होंने कितने सालों के बाद मेरा परिचय अशोकजी से कराया, वह भी चल बसे.