कल्याण सिंह रावत और मैती आन्दोलन (चौथी और समापन किश्त)

कल्याण सिंह रावत और मैती आन्दोलन (चौथी और समापन किश्त)



मैती आन्दोलन के द्वारा किये गये कार्य

 

* अपने प्रारम्भ से आज तक पांच लाख से अधिक शादियों में पेड़ लगाये गये।

* वर्ष 2000 तथा 2014 में आयोजित श्री नंदा देवी राजजात के समय पर नंदासैंण में नंदा मैती वन की स्थापना की गई। इसमें लगभग 10,000 बांज तथा अन्य प्रजातियों के पौधे एक आकर्षक वन का आकार ले चुके हैं।

 

* जनपद चमोली के कर्णप्रयाग विकासखंड के रामधार तथा बेनोली गांव के समीप पितृवन की स्थापना वर्ष 2000 में की गई। प्रतिवर्ष सामूहिक रूप से इस वन में पित्रों के नाम से वृक्षारोपण किया जाता है। चिपको नेत्री गौरादेवी के नाम पर गौरावन का निर्माण किया गया।

 

* उत्तराखंड के कई स्थानों पर पर्यावरण एवं विकास मेलों की स्थापना की गई। ये मेले प्रतिवर्ष अब मनाए जाते हैं। इनमें श्रावणी पर्यावरण मेला असेड़-सिमली, जनपद चमोली, पर्यावरण एवं विकास मेला नंदा सैंण, जनपद चमोली, इंदिरा गांधी पर्यावरण एवं खेलकूद सांस्कृतिक मेला उत्तरकाशी। पर्यावरण मेला हंसकोटी, चमोली। पर्यावरण स्वच्छता मेला कोट भ्रामरी, डंगोली, बागेश्वर प्रमुख हैं।

 

* वर्ष 2006 में देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान के शताब्दी वर्ष पर मैती संगठन द्वारा ऐतिहासिक सम्मान समारोह आयोजित किया। उत्तराखंड के बारह लाख स्कूली बच्चों द्वारा पर्यावरण संरक्षण के प्रति संकल्प हस्ताक्षरों से युक्त दो किलोमीटर हरे कपड़े से एफ0आर0आई0 के मुख्य भवन को लपेट कर सम्मान दिया गया। वह कपड़ा एफ.आर.आई. के संग्रहालय में सुरक्षित है।

 

* उत्तरकाशी जनपद के टोंस घाटी में स्थित एशिया का सबसे ऊंचा चीड़ के महावृक्ष के टूट जाने पर मैती संगठन द्वारा उसी प्रजाति (पाइनस राक्सीवर्धाई) के नए पौधे का रोपण तथा टूटे पैड़ का जलाभिषेक कार्यक्रम जनता के सहयोग से किया।

 

* झील बनने के बाद पुरानी टिहरी तो डूब गई लेकिन इस डूब चुकी टिहरी के ऐतिहासिक स्थलों की मिट्टी आज भी विरासत के रूप में पेड़ों की जड़ों में संरक्षित है। यह काम किया है मैती संगठन ने। टिहरी बांध में जलभराव से पहले संगठन द्वारा पुरानी टिहरी के 35 ऐतिहासिक स्थलों की मिट्टी को एकत्रित कर बादशाहीथौल स्थित महाविद्यालय के परिसर में गढ्ढे बनाकर उसमें डाला गया और उन गढ्ढों में पेड़ लगाए गए।

 

* वन्य जंतुओं के संरक्षण तथा उनके प्रति दयाभाव जगाने हेतु मैती संगठन द्वारा कई बार वन्यजीव ज्योति यात्राओं का आयोजन वन विभाग के सहयोग से किया गया। कार्बेट नंदा देवी वन्यजीव ज्योति यात्रा, नंदादेवी देहरादून वन्यजीव ज्योति यात्रा, असकोट देहरादून वन्यजीव ज्योति यात्रा, पुरोला देहरादून वन्यजीव ज्योति यात्रा प्रमुख है।

 

* प्राकृतिक आपदाओं के प्रति जनचेतना जगाने तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति जनचेतना जगाने हेतु वर्ष 1998 में 800 किमी लम्बी देवभूमि क्षमा यात्रा का आयोजन किया।

* कारगिल शहीदों के नाम पर जनपद चमोली के बधाण गढ़ी क्षेत्र में वृहद वृक्षारोपण कर शौर्य वन का निर्माण किया।

 

* हिमालय क्षेत्र के निरीह वन्य प्राणियों को शिकारियों के चंगुल से बचाने के लिए उत्तरकाशी के राजगढ़ी, सरनौल, ब्याली। चमोली जनपद के रतगांव, मुंदोली, मानमती तथा पौड़ी जनपद के विनसर, तरपाली सैंण, चौंरीखाल में वन्य जीव संरक्षण शिविरों का आयोजन किया गया। इन शिविरों में हजारों वन्य प्राणियों को शिकारियों से बचाया गया।

 

* उत्तरकाशी में राजगढ़ी तथा जनपद चमोली के ग्वालदम में देवदार एवं अन्य चारा प्रजाति के 40,000 से अधिक पौधों की नर्सरी तैयार कर स्थानीय लोगों को निशुल्क वृक्षारोपण हेतु प्रदान की गई।

* श्री बद्रीनाथ मंदिर के ऊपर उत्तरी ढलान पर माणा गांव की मैती संगठन की महिलाओं ने वन विभाग के सहयोग से 5000 भोज वृक्षों का रोपण किया।

 

* वर्ष 2000 में श्रीनंदा देवी राजजात के आयोजन के पश्चात हिमालयी बुग्याल वैदनी में कैंप लगाकर प्लास्टिक व उसका निस्तारण किया।

 

* वर्ष 1995 में गढ़वाल तथा कुमाऊँ विश्वविद्यालय की स्थापना की रजतजयन्ती वर्ष के उपलक्ष में नैनारथ व नन्दारथ यात्राओं का आयोजन कर छात्रों ने एक-दूसरे के परिसर में जाकर वृक्षारोपण किया।

 

* 25 जुलाई 2010 को मैती संगठन तथा उत्तराखंड सरकार के संयुक्त तत्वाधान में ‘शौर्य वृक्षारोपण’ किया गया। इसमें प्रातः 10ः00 बजे से 11ः00 बजे तक, एक घण्टे की अवधि में पूरे राज्य में समस्त विभागों के कर्मचारियों एवं छात्र-छात्राओं द्वारा वृक्षारोपण का ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किया गया। पूरे राज्य में 1 घंटे में कुल बारह लाख उनसठ हजार पौधों का रोपण हुआ।

 

* 2007 में पंचायत चुनाव में विजयी प्रधानों, जिला पंचायत प्रतिनिधियों के द्वारा विजय की खुशी में अपने गांव के प्राथमिक विद्यालय के परिसर में विकास का संकल्प लेकर एक वृक्ष लगाया गया। पूरे उत्तराखंड में सोलह सौ प्रधानों एवं जनप्रतिनिधियों ने वृक्ष लगाये।

 

* पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों को सम्मान का शुभारंभ 1998 में किया गया है। अब तक डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों को यह सम्मान दिया जा चुका है।

 

* भारत के लोकतन्त्र के सत्तर वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में ‘लोक शक्ति वृक्ष अभियान’ का आयोजन किया गया। प्रत्येक विधान सभा में वहां विधायक के नाम का एक पेड़ उस विधानसभा के एक चयनित विद्यालय में अध्ययनरत दो गरीब बेटियों के हाथों से लगाया गया। वे बेटियां जब तक विद्यालय में पढ़ती रहेंगी उस पेड़ की देख-भाल करती रहेंगी। इन दो बेटियों का सम्पूर्ण विवरण तथा पेड़ लगाते हुए फोटो विधायक को भेजी गई। विधायक से इन दो बेटियों की मदद का अनुरोध किया गया। इस प्रकार पर्यावरण संरक्षण और बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ कार्यक्रम को आपस में जोड़ते हुए उत्तराखण्ड में 70 पेड़ लगाये गये तथा 140 बेटियों को इस अभियान से जोड़ा गया।

 

* प्रवासियों को उनके गांव से भावनात्मक रूप से जोड़ने तथा पलायन रोकने के लिए ग्राम गंगा अभियान भी संचालित किया जा रहा है। इस अभियान के तहत प्रत्येक प्रवासी अपने गांव के नाम पर प्रतिदिन एक रूपया गुल्लक में जमा करता है। 5 जून, विश्व पर्यावरण दिवस पर वह पूरे वर्ष में जमा धनराशि को अपने पैतृकि गांव भेज देता है। जहां ग्राम गंगा समिति उन पैसों से उनके परिवार के नाम का वृक्ष लगाती है तथा शेष धनराशि गांव की स्वच्छता, स्वास्थ्य ताथा शिक्षा पर ब्यय करती है।

 

इन हस्तियों ने सराहा है मैती आन्दोलन को

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मदन मोहन मालवीय की पौत्री श्रीमती आशा सेठ, उत्तर प्रदेश की तत्कालीन वित्त मंत्री सैयद अली की पुत्री हमीदा बेगम, उत्तराखंड की राज्यपाल श्रीमती मार्ग्रेट अल्वा, कनाडा की तत्कालीन वित्त मंत्री तथा कुछ समय तक प्रधानमंत्री रह चुकी श्रीमती फ्लोरा डोनाल्ड, कनाडा यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर माया चड्डा मैती आन्दोलन की सराहना कर चुके हैं। राजस्थान, गुजरात तथा हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने भी अपने राज्य में यह मुहिम शुरू की है। इंडोनेशिया सरकार ने तो कानून ही बना दिया है कि शादी से पहले नव दंपति का एक पेड़ लगाना आवश्यक होगा।