करें प्रकृति का इजहार : आइए बैराट खाई

||करें प्रकृति का इजहार : आइए बैराट खाई||



 


प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक घटनाओं का समावेश जौनसार बावर के बैराट गढ़ किले मे देखने को मिलता है। कालसी से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी और समुद्र तल से 2350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बैराट गढ़ किला है l जिसकी कहानियां सुनकर मन रोमांचित हो उठता है और प्राकृतिक छटाओंं को देखकर मन प्रफुल्लित होता है।

 

यह वही बैराट गढ़ किला है - जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां महाभारत के राजा बैराट का साम्राज्य था। जिन्हें मत्स्य नरेश भी पुकारा जाता था। जिसके प्रमाण आज भी यहां की लोक संस्कृति एवं गांव के नाम से मिलते हैं। जैसे - हाथबादीके अर्थात जहां हाथी बांधते थे। एक गांव का नाम है गौथान जहां गाय बांधी जाती थी।

 

यह वही बैराट गढ पर्वत है - जहां 13 वीं से 17वी सदी के मध्य में शामुशाह दुष्ट राजा के आतंक को समाप्त करने के लिए स्वयं बौठा एवं चालदा महाराज थैना में प्रकट हुए और क्रूर राजा का अंत किया।

यह वही बैराट गढ़ किला है - जिसके लिए 1547 से 1635 तक गढ़वाल और सिरमौर के राजाओं के बीच में इस किले मे साम्राज्य स्थापित करने को लेकर युद्ध होते रहे। गढ़वाल के राजा शंम शाह के सेनापति रिखोला लोधी के युद्ध होने के अनेक प्रमाण मिलते हैं।

 

यह वही बैराट गढ़ किला है - जिस पर 1808 के पश्चात गोरखाओ का कब्जा हो गया, इससे मुक्त कराने के लिए 20 अक्टूबर 1814 मे कर्नल कारपेंटर की सेना कालसी पहुंची जिसे कंपनी सेना कहा गया है इस सेना ने बैराट गढ़ किले को गोरखाओ से खाली कराने के लिए जौनसार बावर के एक हजार से अधिक युवक हथियार प्राप्त करने के लिए कंपनी सेना में अवस्थाएं रूप से भर्ती हुए थे ।

4 दिसंबर सन 1814 को बैराट गढ़ किले को कंपनी सेना ने जौनसार बावर के लोगों के सहयोग से गोरखाओ से इस किले को मुक्त कराया गया ।

 

ऐतिहासिक तथ्यो के अनुसार बैराट गढ़ किले का अत्यंत महत्व रहा है। आज भले ही किले के अवशेष पत्थरों के ढेर के रूप में तब्दील हो गए हो, परंतु किले के चारों ओर विशाल गहरी खाईयां इस बार की ओर इंगित करती है कि इस स्थान का अतीत ऐतिहासिक घटनाओं से भरा पड़ा है।

 

बैराट गढ़ पर्वत प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से अत्यंत सुंदर है। जहां से एक साथ यमुना और हिमालय के दर्शन होते हैं चारों तरफ सुंदर बांझ व बुरांस के जंगल, ऊंची - ऊंची पहाड़ियां सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हर मौसम में अपना रंग बदलती है और आमंत्रित करती है इतिहास के शोधार्थियों को व पर्यटकों को अपनी ओर जानने व समझने के लिए।