लाॅकडाउन के दौरान जो सीखा उसे आत्मसात करना होगा

||लाॅकडाउन के दौरान जो सीखा उसे आत्मसात करना होगा||




ठीक 22 मार्च 2020 को जनता कफ्र्यू लगा और इसी दिन देशभर में लाॅकडाउन की इबारत लिख दी गई थी। देश-दुनियां में अलग-अलग समय के लिए लाॅकडाउन हो गया। अपने देश में 20 मार्च से 31 मई तक लाॅकडाउन रहा। इस दौरान नफा नुकसान की पूरी जानकारी सरकार के पास है। मगर लाॅकडाउन के दौरान आम लोगो को जो महसूस हुआ उसकी बानगीभर है। फलस्वरूप इसके पर्यावरण दिवस की सफलता ही कही जायेगी। की इस दिवस पर पर्यावरण संकट को लोग प्रस्तुत करते थे। आज हम यहां प्रतिकूल पर्यावरण की बात करने जा रहे है।  


बता दें कि ना कोई हूजूम, ना कोई सेमिनार, ना कोई प्रदर्शन इस हेतु लाॅकडाउन के दौरान सोशल मीडिया का बहुतायात में उपयोग किया गया। लोग इसके  अलग-अलग प्लेटफार्म पर विविध विषयों को लेकर सजीव रूप से समूहो में मुखातिब हुए। जबकि पहले यह प्रचलन शून्य मात्र था। इसके अलावा सरकार की स्वास्थ्य सेवाऐं और स्थानीय ईकाईयों ने जो लोक सेवा की मिशाल कायम की है वह तारिफ-ए-काबिल है।
नियत समय पर स्थानीय निकायों की कूड़े उठाने वाली गाड़ी प्रातः काल दरवाजे पर दस्तक दे देती है। स्वच्छ भारत का इरादा कर लिया हमने, देश से अपने ये वादा कर लिया हमने जैसे सुरीले गाने की आवाज आते ही लोग अपने-अपने घर के आगे कूड़ेजार हाथ में थामे हुए दिखते है और गाड़ी इस सुरीली आवाज के साथ कूड़ा उठाती है। इसके अलावा शहर की सभी गंदी नालियां साफ-सुथरी दिखाई देनी लगी। रोज सफाईकर्मी सफाई का अच्छा इन्तजाम करते रहे। शहर में कोई भी कूड़ा खुली जगह पर नहीं दिखा। इसीलिए भी कि लोग भी व्यवस्थित ढंग से कूड़े को कूड़ेदान में डालते थे। इस हालात में ऐसा लगता था कि 50 फीसदी लोग बेवजह शहर में भीड़ बढाते होंगे। खास बात यह रही कि मंहगाई कहीं भी नजर नहीं आई। शहर आदि स्थानो पर कोई भी लावारिस व्यक्ति व पशु नहीं दिखाई दिये। दिलचस्प यह रहा कि बैंक, पुलिसकर्मी, स्वास्थ्यकर्मी, सफाईकर्मी हर समय तैनात दिखाई दिये। जबकि अन्य प्रशासनिक विभागो के कर्मचारियों की मनमर्जी खूब चली।


इसके अलावा पुलिसिंग की चाक चैबन्द व्यवस्था या पुलिस और जनता का दोस्ताना व्यवहार भी इनो दिनो खुलकर देखा गया है। और तो और खाद्य पदार्थो आदि के दाम भी इस दौरान न्यूनतम ही रहे हैं। महिला व बच्चों से संबधित उत्पीड़न की खबरे लेश मात्र ही सुनाई दी। चिकित्सालयों में मरीजों की लम्बी-लम्बी कतारे गायब ही हो गई थी।



इधर एक बात जोरो से सामने आई और वर्चुवल मिडीया के प्लेटफार्म पर भी चर्चाओं में रही कि गंगा नदी आजकल साफ-सुथरी दिख रही है। गंगा में मछलियां फटकती हुई दिख रही है। यह अजूबा कैसे हुआ, जो चर्चाओ का विषय बना। ज्ञात हो कि आजादी के कुछ वर्षा बाद से ही गंगा की सफाई के लिए सरकारों ने भारीभरकम बजट का दरवाजा खोला दिया है। मगर लाॅकडाउन तक गंगा ना तो अबिरल बही और ना ही स्वच्छ हो पाई, लाखो, अरबो-खरबो रूपय खर्च हो गये थे, गंगा की सफाई के लिए। पर लाॅकडाउन के दौरान गंगा का आसमानी नीला साफ-सुथरा पानी बरबस लोगो को अपनी ओर आकृषित कर रहा था।


अब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या लाॅकडाउन के दौरान सीवर बन्द हो गई थी या सीवर में गंदगी ही नहीं थी। जबकि सभी प्रकार के सीवर गंगा में जा ही रहे थे। इतना जरूर हुआ कि इस दौरान व्यवसायिक गतिविधियां रूक गई थी। सो यह कह सकते हैं कि गंगा स्वच्छता के लिए व्यवसायिक गतिविधियों को और व्यवस्थित करने की आवश्यकता है, जो इस दौरान स्पष्ट रूप से देखने को मिला है।


इसके इतर दिल्ली इत्यादी महानगरो में जहां के लोगो ने कभी वर्षो पहले आसमान में तारे दिखे थे, उन्होंने इस दौरान रात्री में नीले आसमान पर तारो का विहंगमय दृश्य देखा है।  यानि 40 वर्ष तक के लोग भी कहने लगे हैं कि वाह! क्या बात है, तारो का इतना सुन्दर नजारा कभी उन्होंने देखा ही नहीं था। पर्यावरण का सुन्दर नजारा यानि प्रदूषण जैसे वायु, जल व ध्वनी प्रदूषण का इस धरा से सफाया ही हो गया हो। हर वक्त धरती का तापमान सामान्य ही महसूस किया गया है। सुबह के पहरे में चिड़ियों की चहचहाट कानो में एलारम भर देने लगी, शहरो से जो गायाब ही हो गई थी।


इस अन्तराल में लोग बहुत कुछ सीख गये थे। ई -पास बनाने जैसे कार्य लोगो ने स्वयं के माबाईल से फिलप करना सीख लिया था। घर-घर में अधिकांश पुरूषों ने किचन संभालना सीखा है। दूसरी ओर महिलाओं ने जलेबी, पकौड़ी से लेकर मोमो आदि फास्ट फूड के साथ-साथ स्थानीय व्यंजन भी बनायें। और परिवार संग खूब मजे लिए। इधर भवनविहीन और दैनिक कमाने वाले परिवारो की नजर सरकारी व गैर सरकारी खाद्यान्न पर रही ताकि उन्हे भी भरपेट भोजन मिल जाये।



फोटो साभार गूगल बाबा