पिंकी, बंटी और लाॅकडाउन


||पिंकी, बंटी और लाॅकडाउन||



 

पिंकी देहरादून के चावला चौक के नजदीक एक कोचिंग सेंटर में ग्रुप सी की तैयारी करती है"। लेकिन लाॅकडाउन की बजह से आजकल गाँव में है। पिंकी का गाँव ऐसे गदने में बसा है जहाँ Bsnl 2g के अलावा कोई भी नेटवर्क काम नहीं करता है।इसलिये वह बहुत परेशान थी क्योंकि पिछले डेड महीने से वह अपने बाबू बंटी से केवल एक ही बार वीडियो काॅल कर पाई थी, और उस वीडियो काॅल के लिये भी उसे ऊपर धार तक जाने में दो किलो मीटर की चढाई चढ़नी पड़ी थी।



 

पिंकी का बाबू बंटी भी करनपुर के एक कोचिंग सेंटर में Tet की तैयारी कर रहा है। वह बी.एड तो अपने पिताजी (सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक) की बदौलत जम्मू से डोनेशन देकर कर चुका है लेकिन अब Tet निकालना उसके लिये सौण-भादों के महीने के गाढ़-गदेरे को पार करने जैसा हो गया है।

गाँव खोला में जब दोस्त लोग पूछते हैं कि " अरे यार बंटी! क्या हो रहा है तेरी नौकरी का"

तो बोलता है " अरे एक्चुली में, मैं न.. पीसीएस की तैयारी कर रहा हूँ और पीसीएस निकालने के लिये तीन से चार साल तो लग ही जाते हैं। इसलिये मैं धैर्य रख रहा हूँ, तो कुछ तुम भी रखो यार।



 

लाॅकडाउन के कारण पिंकी और बंटी को अलग हुए पूरे डेड महीने हो चुके थे। उन्हे आराघर के मोमो, पल्टन बाजार की आइस्क्रीम, संडे मार्केट के कपड़े और गाँधी पार्क का बैंच बार बार याद आ रहा था। सुखानुभूति वाले वे क्षण उनकी स्मृति में बार बार प्रकट हो रहे हैं, जब वे एक दूसरे के केशों पर हाथ फेरते थे और घंटो तक एक दूसरे की उंगलियों से खेलते रहते थे। वे फोन काॅल पर बात तो कर रहे हैं लेकिन पूर्व की भाँति कहीं न कहीं रसास्वाद से वंचित थे। अब धीरे धीरे उन्हे ये डर भी सताने लगा था कि वे इस कोराना से मरे न मरे लेकिन जल्द से जल्द उनका मिलन न हुआ तो एक दूसरे के वियोग में वे अवश्य मर जायेंगे।



 

" लेकिन अब मरना नहीं बल्कि मिलना है" यह सोच कर बंटी और पिंकी ने मिलने का फैसला कर लिया। बंटी अपने गाँव से पिंकी के गाँव को चल दिया। लेकिन वह गाँव से 10 कि. मी. आगे पहुँचा ही था कि पुलिस ने उसे पकड़ लिया। झूठ पर झूठ बोलने के बाद भी जब पुलिस वाले उसके जवाबों से संतुष्ट न हुए तो, उन्होने बंटी के पिछवाड़े पर डंडे बरसाने शुरू कर दिये। और तब तक बरसाते रहे जब तक उसने सच न उगल दिया। उसके सच बोलने पर ही पुलिस वालों ने उसे छोड़ा, और वापस गाँव भेजा। इधर पिंकी उसकी राह ताकती रही। और गुस्से से लाल पीली हो गई लेकिन बंटी ने जब फोन पर सारा वाकिया बताया तब जाकर वह शाँत हुई।



 

अभी कुछ दिन पहले सरकार की लाॅकडाउन में कुछ ढील देने के बाद पिंकी ने बंटी पर मिलने के लिये फिर से दबाव बनाना स्टार्ट कर दिया। बंटी के मन में अब दो दो डर बैठ गये थे। एक प्रेमिका के गुस्से का डर और दूसरा पुलिस की मार का। लेकिन काफी देर तक मस्तिष्की द्वन्द्व होने के बाद आखिरकार प्रेमिका का डर पुलिस की मार के डर पर भारी पड़ गया। बंटी ने नये कपड़े पहने, बाइक स्टार्ट की, और पिंकी को मिलने फिर से चल पड़ा उसके गाँव की ओर।



 

पिंकी भी घर में मार्केट जाने का बहाना बना कर चल दी। वे दोनो मिले ही थे कि तभी बारीश होने लगी । लेकिन बारीश की परवाह किये बगैर ही दोनों मार्केट से 200 मीटर आगे पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गये और प्रेम में लीन हो गये।

 

वे एक दूसरे में खोये हुए थे कि तभी पिंकी के गाँव का एक व्यक्ति, जो कि गाँव में नारद भैजी के नाम प्रसिद्ध है ,, ने दोनो को देख लिया।

 

पिंकी की भी नजर जब नारद भैजी पर पड़ी, तो वह बेहद डर गई। और यह डर भी स्वाभाविक था क्योंकि वे दोनों पहले भी नारद भैजी की नजर में आ चुके थे और उन दोनो की कुंडली नारद भैजी के पास पहले से थी।

पिंकी ने बिना देर किये हुए बंटी को बाय बोलते हुए पैदल वाले शाॅर्ट कट रास्ते से गाँव के लिये दौड़ लगा दी, क्योंकि नारद भैजी जब तक गाँव पहुँचता, उससे पहले ही उसे किसी भी स्थिति में अपने घर पहुँचना था।



उधर बंटी भी घर के निकल गया लेकिन उसके मन में भी डर था कि कहीं नारद भैजी उसके प्रधान को फोन न कर दे। क्योंकि वह यतो नाम ततो गुण है। और उसके गाँव के प्रधान से भी उसका संपर्क है।

 

नोट: इस पोस्ट का जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है, संबंध होने पर महज संयोग समझा जाये