आम घटना के खाश सन्देश
||आम घटना के खाश सन्देश||


हाल ही मेरा स्पीड पोस्ट आया. थोडा अर्जेंट था तो मैं उसे लगातार ट्रेस कर रहा था . वैसे भी पहुँचने में देर हो चुकी थी मुझे मेसेज आया कि वह श्रीनगर आ चुका है. फिर मेसेज आया कि डिलीवरी के लिए निकल चुका है. दोपहर तक इंतज़ार करता रहा लेकिन फिर मेसेज आया कि घर बंद होने के करण डिलीवर नहीं हो पाया. हालाँकि हम ऑफिस में ही थे. थोडा आश्चर्य हुआ. मैंने अपने दोस्त और साथियों से पोस्ट ऑफिस का नंबर माँगा और फ़ोन किया. हमने पूछा कि ऑफिस तो खुला है तो घर बंद होने का मेसेज क्यों डाला. उन्होंने कहा कि जो व्यकित आपके इलाके में डाक देता है उसके घर में कुछ जरुरी काम आ गया था. आप यदि आज ही इस डाक को चाहते है तो पोस्ट ऑफिस आ कर ले जा सकते हैं. इस घटना को आम इसलिए लिख रहा हूँ कि ऐसा अक्सर ही होता है और हमने भी इसे जिन्दगी की आम बात मान ली है .

 

इसीके समान्तर मेरी बेटी का कूरियर आया. कूरियर वाले ने बेटी को 5 - 6 काल किये लेकिन फ़ोन साइलेंट होने की वजह से उठा नहीं पायी. जब मिस कॉल देखी और कॉल बेक किया तो वह 4 किमी वापस जा चुका था. उसने कहा कि मैं कुछ और डाक वितरित करके वापस आता हूँ. दो घंटे बाद उसकी कॉल आई कि मैं आ रहा हूँ. घर पहुँचने से पहले उसकी फिर एक बार काल आई कि डाक लेने गेट पर आ जाय. ये घटना भी खाश नहीं है क्यूंकि अक्सर ऐसा होता रहता है .

 

सवाल तो ये है कि वो क्या चीज है जो काम करने का ये मानस तैयार करती है?? एक आदमी जिम्मेदारी के भाव से काम करता प्रतीत होता है जबकि दूसरा कैसुअल एप्रोच से काम करता है? केवल इसे निजी और सरकारी तंत्र की परिभाषाओं में डालकर ने देखें बल्कि थोडा आगे भी आंकलन करने की जरुरत है