चल पथिक निरंतर


||चल पथिक निरंतर||



चल चला चल पथिक निरंतर, तनिक नहीं विश्राम करो।
मंजिल को पाने की खातिर, स्वपथ का निर्माण करो।।



अर्जुन सा लक्ष्य तुम साधों, एकलव्य सी साधना।
चन्द्रगुप्त मौर्य बन जाओ, संकटों से ना हारना।
प्रहलाद सी भक्ति हो तुझमें, ध्रुव सा निश्चय अडिग करो।



चल चला चल पथिक निरंतर, तनिक नहीं विश्राम करो।
मंजिल को पाने की खातिर, स्वपथ का निर्माण करो।।



राह में कंटक लाख मिलेंगे, राही मन का धैर्य ना खोना।
शंकाओं को छोड दो पीछे, भाग्य की तुम बाट ना जोहना।
होगा लक्ष्य सुनिश्चित इक दिन, मन भीतर विश्वास धरो।



चल चला चल पथिक निरंतर, तनिक नहीं विश्राम करो।
मंजिल को पाने की खातिर, स्वपथ का निर्माण करो।।



नया दौर आयेगा फिर से, युग निर्माता कहलाओगे।
बटोही बढ़ना आगे-आगे, पीछे दुनिया को पाओगे।
उद्देश्यजनित, उत्साहपूर्ण,उत्कृष्ट कर्माें की नींव धरो।



चल चला चल पथिक निरंतर, तनिक नहीं विश्राम करो।
मंजिल को पाने की खातिर, स्वपथ का निर्माण करो।।



यह कविता सम्पूर्ण सर्वाधिकार सुरक्षित है कृपया प्रकाशन से पूर्व लेखिका की संस्तुति अनिवार्य है।