हाई एटीट्यूट रूट स्टाक सेब बनेगा घेस घाटी की पहचान
-लाकडाउन में सीमांत क्षेत्र के लोगों ने किया बड़े पैमाने पर काम
- पिछले तीन चार महीने हम सभी कोरोना के साये में छटपटाते रहे हैं। शहरों में तो हम लोग या तो बाजार खुलने का इंतजार करते रहे या फिर अपने आसपास कोरोना का मरीज न आने की प्रार्थना करते रहे, लेकिन इस दौरान गांवों विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में न तो जनजीवन रुका और न ही दैनिक कामकाज बाधित हुआ। - - यह सब मुझे खुद अपनी आंखों से दिखा जब मैं जून में अपने गांव घेस गया।
गांव में रह रहे लोग भले ही कोरोना की दहशत में बाहर से आने वाले अपनों के साथ भी परायों जैसा व्यवहार करने को मजबूर दिखे, लेकिन इस संकट में भी लोगों को बेहतर जीवन जीने के लिए काम करते हुए पहाड़ की वादियों ने देखा। लोगों ने अपने खेत—खलिहान में पसीना तो बहाया ही अपने घरों में सुविधाएं बढ़ाने के लिए बहुत काम किया। लाकडाउन के दौरान देश—विदेश में रहने वाले साढ़े तीन लाख लोगों के साथ ही राज्य के भीतर से अपने गांवों में पहुंचे लाखों लोगों से गांवों में लंबे समय बाद खूब चहल—पहल दिख रही है। इस दरमियान मैं भी समय निकालकर अपने गांव घेस गया। बहुत अच्छा लगा कि चारों और खेत फसलों से लहलहा रहे हैं। इस क्षेत्र में सामान्य तौर पर लोग नकदी फसलों आलू, मटर, रामदाना, राजमा, मडुआ, आेकल व गेहूं की खेती करते हैं, लेकिन अब बागवानी और जड़ी—बूटी की खेती के प्रति गंभीरता से काम कर रहे हैं।
गांवों को फिर से आबाद करने की लोगों की जिजीविषा देखकर हमने भी घर के सामने के अपने दो सौ नाली के चक्के में इस वर्ष बड़े पैमाने पर फलदार पेड़ों के रोपण का प्लान बनाया है। छोटे भाई (वर्तमान में सेना में सुबेदार) लक्ष्मण बिष्ट ने लाकडाउन के दौरान ही गांव के पैत्रिक मकान का कायाकल्प करा दिया है, अपनी भूमिका तलाशते—तलाशते मेरा ध्यान बागवानी को विस्तार करने पर टिका। घर के सामने ही इस चक्के में गांव के ही कुछ मेहनतकश लडक़ों से पिछले वर्षों में उग आयी झाडिय़ों को कटवाकर पूरी तरह साफ करवा दिया। प्लाट के साफ हो चुके करीब—करीब चालीस फीसद हिस्से में लगभग दो हजार पेड़ों का रोपण हो सकेगा। अक्टूबर में कटी हुई झाडिय़ों व उनकी जड़ों को जलाने के बाद गड्ढ़े खोदकर दिसंबर-जनवरी में हाई एटीट्यूट में होने वाले उन्नत किस्म के रूट स्टाक सेब के पेड़ लगाने की वृहद योजना है।
एक अच्छी खबर आपके साथ शेयर करना चाहता हूं। जैसा कि आपके साथ पिछले संवादों की कड़ी में बताया था कि 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत जी से मिलकर बागवानी को बड़ा आकार देने की योजना बनायी थी। उसी साल पूरे इलाके में करीब 30 हेक्टेयर में वृहद वृक्षारोपण सेब का कराया। इसके बाद वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी के प्रयासों से वहां नकदी फसल के रूप में हाईब्रीड मटर की खेती भी बड़े पैमाने पर शुरू हो चुकी है। बनारस के पप्पू भाई के सहयोग से यह काम 2016 से निर्वाध रूप से चल रहा है। सीएम त्रिवेंद्र रावत जी ने केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपद नायक के साथ यहां लीवर की दवा बनाने वाली कुटकी व अतीश की खेती को विस्तार करने की बड़ी पहल की जो आज बड़ा आकार लेती दिख रही है।
पिछले दो वर्षों में बड़ा परिवर्तन यह आया है कि सेब के पेड़ों में फल आने से संभावनाआेें के बड़े पहाड़ उभरे हैं। अब लोग पेड़ों की देखभाल करने और उसको विस्तार देने के लिए गंभीरता से चिंतन—मनन करने लगे हैं। सेब में फल आने से पूरे इलाके में हिमाचल प्रदेश की तरह बागवानी से आर्थिकी बढ़ाने की बड़ी उम्मीद जगी है। पप्पू भाई (वही मटर वाले पप्पू भाई बनारसी) ने पिछले साल हिमाचल से 70 पेड़ हाई एटीट्यूट रूट स्टाक सेब के पेड़ लाकर दिये थे। दो साल के भीतर ही उस पर फल आ गया है।
फल का पहला साल होने के कारण इस बार हमने विशेषज्ञों की राय पर फूल गिरवा दिये थे, लेकिन फल की क्वालिटी देखने के लिए कुछ फूल छोड़ दिये थे। हमारा प्रयोग सफल हुआ। पोस्ट के साथ दिख रहा लाल रंग का यह सेव हिमाचल से मंगाये गये पेड़ों का ही तोहफा है। अब आगे हाई एटीट्यूट रूट स्टाक सेब का उत्पादन करना है। सेव की इस वैरायटी का बाजार भाव भी बहुत अच्छा है। इसकी कीमत कम से कम दो सौ रुपये किलो है। इतनी तो उम्मीद कर सकते हैं कि उत्पादन करने वाले बागवान को कम से कम से सौ रुपये किलो का रेट मिल ही जाएगा। जिस किसी भी परिवार के पास ढाई तीन सौ पेड़ होंगे उनका गुजर-बसर आसानी से हो जाएगा।
एक और संभावना आपके साथ शेयर करता हूं। नब्बे के दशक में अखरोट के एक दर्जन पेड़ लगाये थे। पिछले कई साल से ये पेड़ भी फल दे रहे हैं, बहुत ही अच्छी क्वालिटी का अखरोट है। आप सोच रहे होंगे कि हमें तो अखरोट खिलाया नहीं, लेकिन क्या करें पिछले कई सालों से जंगल के कठफोवड़े ही पल रहे हैं, हमारे हिस्से भी काफी कम आता है। हम सब अखरोट का विस्तार करेंगे तो शायद कठफोवड़े कम नुकसान पहुंचा पाएंगे। किखोला, सरमता और नाफ की बेल्ट में फलों के रिजल्ट बहुत ही उत्साहवर्धक हैं और अब हम आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र को बड़ी फलपट्टी के रूप में विकसित कर लेंगे, इतना भरोसा मुझे हो गया है। क्योंकि गांव में जितने भी लोग मिले, सबने एक ही बात कही कि सेब के पेड़ हमारे लिये भी करा दीजिए।
क्षेत्र के सभी लोगों से अपील सेब व अखरोट के नये पेड़ हर साल बढ़ाते हुए चलें। आने वाला समय हमारा है। कभी बहुत ही पिछड़ा माने जाने वाला यह क्षेत्र आज विकास की मुख्यधारा में जुड़ गया है। कैल घाटी के चारों गांव घेस, हिमनी, बलाण व पिनाऊं के लिए 2009 में प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक़ पहुंचने से बहुत फायदा हुआ। दो साल पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी के प्रयासों से यह क्षेत्र ग्रिड की रोशनी से भी जुड़ गया।
गांव का जूनियर हाईस्कूल आज इंटर कालेज का स्वरूप ले चुका है। पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी, महाराष्ट्र के गवर्नर व पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व सीएम हरीश रावत व वर्तमान सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत जी की इस सीमांत क्षेत्र पर विशेष कृपा रही है। किसी ने सडक़ दी तो किसी ने स्कूलों का उच्चीकरण किया तो किसी ने बिजली देकर क्षेत्र का अंधकार मिटाया और नकदी फसलों से आर्थिकी को नयी दिशा दिखायी। आगे बहुत कुछ होना है, लेकिन पहले इस साल दिसंबर में देखता हूं कि सेब का नया बगीचा लगाने की योजना कहां तक फलीभूत हो पाती है।