पहाड़ की नारी का पहाड़ सा जीवन


By - Vijaypal Rawat

||पहाड़ की नारी का पहाड़ सा जीवन||

 



सरनौल गाँव से शुरू हुई इस सर-बडियार पद यात्रा के एक लंबे सफर के बाद जब हम "हलती" गाड़ पार कर बडियार घाटी के पहले गाँव पौंटी की खड़ी पगडंडीयो पर चल रहे थे तो एक स्थानीय महिला "घुंघरी देवी" से रास्ते में भेंट हुई। वो शायद कहीं जंगल से या अपने खेतों से लौट रही थी।



 

मैंने स्थानीय भाषा में उससे बातचीत शुरू की तो उन्हें माँ जी कह कर संबोधित करने लगा। मेरे ठीक आगे चल रहे बड़े भाई ने रतन असवाल जी रूके और उन्होंने मुझे टोकते हुऐ पूछा - "तुम्हें इन महिला की उम्र पता हैं कितनी हैं ?

 

मैंने अंदाजे से कहा- " हाँ लगभग 48-50 की तो होंगी"

रतन भाई बोले - "शर्त लगा लो ये महिला लगभग 27 से 30 के बीच के उम्र की हैं और तुम उन्हें माँजी बोल रहे हो"



 

मैं चौंका और उन महिला से उनकी उम्र पूछी तो पता चला वो 28 साल की थी। मुझे उनकी हालत देखकर विश्वास नहीं हुआ फिर रतन भाई ने समझाया कुपोषण के कारण इनका हिमोग्लोबिन कम हैं इसलिए ये अपनी वास्तविक उम्र से अधिक लग रही हैं।



 

खैर बहस वहीं खत्म करके हम आगे पौंटी गाँव की तरफ बढ़े और रात्रि विश्राम के लिये हम ढिंगारी गाँव पंहुचे जहाँ का एक नौजवान कैलाश शुरू से हमारे इस सफर का मेजबान सदस्य रहा है। रात्रि विश्राम कैलाश के घर में एक बेहद शालीन आतिथ्य संस्कार में हुआ।रात्रि परिचर्चा में पता चला की स्थानीय मंदिरों में वहाँ महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।



 

इस बात को एक बुजुर्ग बड़े गर्व के साथ एक उपलब्धि की तरह बता रहे थे। मुझे यह बात ठीक नहीं लगी और उनको समझाते हुआ कहा- " जिस फसल का भोग तुम मंदिर में चढाते हो और उसे अपने कड़ी मेहनत और खून-पसीने से खेतों में औरत ही उगाती हैं। जिस पकवान को तुम मंदिर में प्रसाद के रूप में चढाते हो उसे भी औरतें ही अपनी रसोई में पकाती हैं। इस कठिन परिवेश में तुम्हारी आजीविका भी वहीं महिला चलाती है और बुनियादी स्वास्थ्य सेवा ना होने पर वहीं महिला प्रसव के समय सबसे ज्यादा दम तोड़ती हैं और तुम उनको ऐसे अपमानित करते हो।



 

एक बुजुर्ग ग्रामीण ने मुझे टोकते हुऐ कहा- "हमारा देवता नाराज होता है हम क्या करें?

मैंने उन बुजुर्ग से पूछा- "आप अपने देवता को बद्रीनाथ, केदारनाथ ले जाते हो?

वे बोले- "हाँ ले जाते हैं"

मैंने कहा - "वहाँ कौन झुकता है तुम्हारे देवता या बद्रीनाथ-केदारनाथ?

वो बोले - "हमारे देवता झुकते हैं बद्रीनाथ-केदारनाथ तो बड़े भगवान है"

मैंने कहा - "जिस मंदिर में तुम्हारे देवता भी झुकते हैं जब वहाँ महिलाओं के जाने पर पाबंदी नही है तो तुम्हारे देवता को कैसे एतराज हो सकता है"



 

मेरी बात को वे समझ चुके थे और भरोसा दिलाया के वे इस व्यवस्था को बदलने प्रयास करेंगे। एक बात मैंने भी यहाँ आकर समझी पहाड़ की सच्ची नागरिक महिला है जहाँ ये आज भी हैं वहीं सभ्यता और समाज जिंदा हैं और जहाँ-जहाँ ये खेती और गाँव से पलायन कर गयी वहाँ गाँव के गाँव खंडहर हो गये। उत्तराखंड के पहाड़ को बचाना है तो हर विकास योजना की रूप-रेखा महिला को केंद्र में रख कर बनानी होगी।



 

अगर महिलाओं का जीवन स्तर हम सुधार पाये तो हम पहाड़ को बचा सकते हैं। हमारे पहाड़ों के विकास और विनाश के बीच महिलाएं खड़ी हैं।हमें उनके सामाजिक और आर्थिक तरक्की की लड़ाई के लिये संघर्ष करना होगा। ये बात हम जितने जल्दी समझ जायेंगे उतना हमारे समाज के लिये अच्छा होगा।