||पिस रहा आदमी निरन्तर||
आ रहा याद मुझकोनदी के किनारे वहपुराना घराटपानी की कूल परलगा कुळतोड़ा,खोल कर जिसेतेज गति से चला जातापण्डाळे में पानी...पहुंचता जळदोड़े में लगीभेरनी के पौळें के ऊपर !घूमती घेरनी नीचेपानी के वेग से...ऊपर घट्ट पकड़ देता रफ्तारघट्ट के ऊपर लगा होता रियूडाभरा होता जिसमें अनाजगोल आकार के रियूडे के नीचेलगा होता पतला व्ईरा...व्ईरे पर होता फिट ठुक्ठुक्याघूमता जब घट्ट जोर सेछू कर उसे ठुक्ठुक्या बजताठुक्.. ठुक... ठुक्..हिलता रहता जिससे रियूडाधीरे धीरे गिरती अनाज की व्ईरीघट्ट के मुख से गुजर करपहुंचती तळी के ऊपरपिस कर दो पाटों के बीच अनाजआटा बन निकलता बाहर !बारीक और मोटा पीसने कोउच्यौंण्या मिसौंण्या आते कामघट्ट के घूमने की गरण.. गरण.. से मिलतीठुक्ठुक्या की ठुक् ठुक्नदी की सुंस्यांट में समा जाते दोनोंबजने लगती अद्भुत संगीत की धुनें !घट्टकुड़े के भीतरघट्टवाले भग्वाळे बैठ करहांकते गप्पे, लगाते ठहाकेपतबिड़े में तमाखू भरमार कर सोड़ेंगटकते उगलते धुंआछेड़ते कोई कहानी किस्सा!पिस कर ताजा आटाहोता थैली में बन्दभग्वाड़ी के तौर परमिल जाता भग्वाळे कोएक निश्चित हिस्सा!खेत से खलिहान आकरखलिहान से घराट जाकरपिसता अनाज तबमिलती आदमी को रोटीसोचता हूं उस जमानेजब पढ़ा लिखा नहीं था इंसानकौन होगा विज्ञानवेत्ता वहघराट का किया जिसने अनुसंधानबढ़ा विकास का प्रवाह आगे तो...हो गये बन्द सब घराट!इधर काल का घराटघूम रहा रात-दिनपिस रहा आदमी जिसमें निरन्तर !