पिस रहा आदमी निरन्तर

श्री सोमवारी लस लाल उनियाल वयोवृद्ध वरिष्ठ साहित्कार, पत्रकार है। और राजनीतिक सामाजिक कार्यकता है।

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||पिस रहा आदमी निरन्तर||

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आ रहा याद मुझको

नदी के किनारे वह

पुराना घराट

पानी की कूल पर

लगा कुळतोड़ा,

खोल कर जिसे

तेज गति से चला जाता

पण्डाळे में पानी...

पहुंचता जळदोड़े में लगी

भेरनी के पौळें के ऊपर !

घूमती घेरनी नीचे

पानी के वेग से...

ऊपर घट्ट पकड़ देता रफ्तार

घट्ट के ऊपर लगा होता रियूडा

भरा होता जिसमें अनाज

गोल आकार के रियूडे के नीचे

लगा होता पतला व्ईरा...

व्ईरे पर होता फिट ठुक्ठुक्या

घूमता जब घट्ट जोर से

छू कर उसे ठुक्ठुक्या बजता

ठुक्.. ठुक... ठुक्..

हिलता रहता जिससे रियूडा

धीरे धीरे गिरती अनाज की व्ईरी

घट्ट के मुख से गुजर कर

पहुंचती तळी के ऊपर

पिस कर दो पाटों के बीच अनाज

आटा बन निकलता बाहर !

बारीक और मोटा पीसने को

उच्यौंण्या मिसौंण्या आते काम

घट्ट के घूमने की गरण.. गरण.. से मिलती

ठुक्ठुक्या की ठुक् ठुक्

नदी की सुंस्यांट में समा जाते दोनों

बजने लगती अद्भुत संगीत की धुनें !

घट्टकुड़े के भीतर

घट्टवाले भग्वाळे बैठ कर

हांकते गप्पे, लगाते ठहाके

पतबिड़े में तमाखू भर

मार कर सोड़ें

गटकते उगलते धुंआ

छेड़ते कोई कहानी किस्सा!

पिस कर ताजा आटा

होता थैली में बन्द

भग्वाड़ी के तौर पर

मिल जाता भग्वाळे को

एक निश्चित हिस्सा!

खेत से खलिहान आकर

खलिहान से घराट जाकर

पिसता अनाज तब

मिलती आदमी को रोटी

सोचता हूं उस जमाने

जब पढ़ा लिखा नहीं था इंसान

कौन होगा विज्ञानवेत्ता वह

घराट का किया जिसने अनुसंधान

बढ़ा विकास का प्रवाह आगे तो...

हो गये बन्द सब घराट!

इधर काल का घराट

घूम रहा रात-दिन

पिस रहा आदमी जिसमें निरन्तर !