||शनै शनै सामाजिक कार्यो की ओर सोवत राणा||
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आप जानते ही है कि गांधी और विनोबा के देश में आन्दोलनो की एक खास प्रकार की रणनीति रही है। आज हम उतराखण्ड हिमालय के दूरस्थ गांव कसलाना के ऐसे नौजवान से भेंट कराते है जिन्होने गांधी के आन्दोलन की एक कड़ी को अपने आन्दोलन का सशख्त माध्यम बनाया है। वह है पत्र, पत्रो द्वारा अपनी बात को मनवाना।
सोवत पढाई के दौरान से ही सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लग गया था। गांव का कोई भी सामूहिक कार्य हो और इस किशोर की वहां उपस्थिति ना हो ऐसा हो नहीं सकता था। सोवत के परिवार वालो का रूझान था कि सोवत भविष्य में सरकारी सेवा में जाये।
अपने गांव के नजदिक स्कूल राजकीय इण्टरमीडिएट कालेज धारी कलोगी से इण्टर की पढाई पूरी करने के पश्चात सोवत ने ठान ली कि वह तो सिर्फ व सिर्फ सरहद पर जाकर देश की सेवा करेगा।
सो सोवत ने दृढ संकल्प लिया कि उनके ग्रामीण क्षेत्र विकास से बहुत ही पिछड़ रहे है। इसलिए वह अब सरहद पर नही बल्कि सरहद के अन्दर ही लोगो की सेवा में काम करेगा।
वह अपने क्षेत्र में भ्रमण करने लग गया। कई ऐसे सकूल मिले जहां उन्होंने अपनी हैसियत के अनुसार थालिया वितरित की है। वह बताता है कि इन सकूलो में अधिकांश बच्चे मध्यान्तर भोजन के दौरान थाली विहीन दिखाई दिये। इस तरह सोवत का सफर समाज सेवा में आगे बढता गया।
सोवत कहां मानता। उनके सामने पहली समस्या उनके गांव कसलाना और चोपड़ा की थी। कसलाना चोपड़ा मोटर मार्ग 2017 में बनकर तैयार हो गया। पर इस मोटर मार्ग बनने के कारण ग्रामिण किसानो का प्रतिकार और क्षतिपूर्ती आदि मुआवजा लालफिताशाही के कारण दब चुका था।
सोवत ने उठाई कलम और लिख डाला जिलाधिकारी से लेकर सरकार के मुखिया तक। कुछ समय जरूर लगा मगर जो लोग मुआवजा आदि से वंचित हो गये थे। उनका मुआवजा भुगतान हो गया।
अब सोवत की ना तो कलम रूक रही है और ना ही कदम। लगातार क्षेत्र की सेवा में अपने को खपा रहा है।
सोवत है जो गांव स्तर पर छोटी-छोटी समस्याओ को उजागर कर रहा है। कभी सरकारी दफ्तरो के चक्कर तो अस्पतालों चक्कर। इन सभी को मूर्तरूप देने के लिए सोवत पत्र अवश्य लिखता है।
ऐसा कोई विभाग नहीं जिसे सोवत ने पत्र नही लिखा होगा। वह अपने क्षेत्र की समस्या को हमेशा कलमबद्ध करता है और भेज देता है संबधित विभाग को। कार्रवाई न हुई तो लगातार पैरवी करता है।
उनके क्षेत्र में 30 ऐसे गरीब परिवार थे जो एपीएल कार्ड धारक थे। सोवत ने इन परिवारो की पैरवी की तो उन्हे उनके अधिकार मिल गये। अब इन परिवारो के पास बीपीएल का कार्ड है।
ऐसे ही सोवत ने अपने गांव क्षेत्र से वंचित विधवा और वृद्धा पेंशन की पैरवी की तो 35 लोगो को इस पेंशन का लाभ मिल गया।
सोवत राणा का यह पत्र आन्दोलन जारी है। कहता है कि जब तक सांस रहेगी वह अपने क्षेत्र की जनता के विकास के प्रति समर्पित रहेगा।
जी हां। ऐसा भी कह सकते हैं कि सोवत राणा सरकार और जनता के बीच की खाई को पाटने का बखूबी काम कर रहा है।