शेषनाग" की बड़ी चर्चा है

"शेषनाग" की बड़ी चर्चा है...||


भारतीय रेल की सबसे लम्बाई वाली ट्रेन... 251 डिब्बों और 2.8 किमी की ट्रेन... भारत को कमतर आँकने वाले लोग इस ट्रेन के लिए रेलवे की खूब आलोचना कर रहे है... जब अमरीका में मीलों लंबी कोई प्राइवेट ट्रेन चलती है, तो इसकी वीडियो देखकर ये ही लोग भारत को कोसते हैं... अब भारत ने भी एक लंबी ट्रेन का ट्रायल किया है, तब भी ये लोग भारत को कोसते नजर आ रहे हैं...



 

मैं रेलवे से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ व्यक्ति हूँ, इसलिए इस पूरे मामले को समझता हूँ...



होता ये है कि भारतीय रेल में प्लेटफार्मों की लंबाई और सिग्नलों के बीच की अधिकतम दूरी निश्चित होती है... पूरे देश में इसका एक निश्चित स्टैंडर्ड है... इसलिए कोई भी ट्रेन इस निश्चित लम्बाई से ज्यादा लम्बी नहीं हो सकती... यात्री ट्रेनों के केस में एक ट्रेन में 24 से ज्यादा डिब्बे नहीं हो सकते और मालगाड़ी के केस में 50 या 55 डिब्बों की लिमिट है... माल-डिब्बे यात्री-डिब्बों से छोटे होते हैं, इसलिए ज्यादा होते हैं... ट्रेनों की अधिकतम लंबाई फिक्स होती है... इससे ट्रेनों की ओवरटेकिंग और क्रॉसिंग में भी सुविधा रहती है... अगर ट्रेन की लंबाई स्टैण्डर्ड से ज्यादा हो जाएगी, तो पूरी ट्रेन लूप लाइन या साइड लाइन पर नहीं आ पाएगी और दूसरी ट्रेन के लिए ओवरटेकिंग या क्रॉसिंग असंभव हो जाएगी...



 

लेकिन अगर किसी कारण से ट्रेन की लंबाई स्टैण्डर्ड से ज्यादा हो जाए, तो क्या होगा???... कोई बहुत जरूरी बात है या इमरजेंसी वाला केस है और ट्रेन की लंबाई बढ़ानी जरूरी हो ही जाए, तो क्या होगा???... अगर एक डिब्बा भी एक्स्ट्रा लगाना पड़ जाए, तो क्या होगा???... जाहिर है कि ऐसे केस में ओवरटेकिंग या क्रॉसिंग नहीं हो पाएगी... तब रेलवे उस ट्रेन पर अतिरिक्त ध्यान देगा और ऐसी व्यवस्था बनाएगा कि उसके पूरे रास्ते में कोई भी ओवरटेकिंग या क्रॉसिंग न हो... मालगाड़ियाँ यात्री ट्रेनों से धीरे चलती हैं... इसलिए जब पीछे से कोई यात्री ट्रेन आ रही हो, तो मालगाड़ी को अगले स्टेशन पर साइड में खड़ा करके पीछे से आने वाली यात्री गाड़ी को निकाला जाता है... लेकिन उस विचित्र केस में यात्री गाड़ी आगे निकल ही नहीं सकती... सामने से आने वाली ट्रेन को साइड में खड़ा करके मालगाड़ी को निकाला जाता है...



 

तो चाहे एक डिब्बा एक्स्ट्रा हो या 100 डिब्बे एक्स्ट्रा हों, बात वही रहेगी... इस ओवरलेन्थी ट्रेन को वरीयता देनी पड़ेगी... ऐसा केवल उन्हीं मार्गों पर हो सकता है, जहाँ यात्री गाडियाँ कम चलती हों... यात्री गाड़ियों को लेट नहीं किया जा सकता और मालगाड़ियाँ को ज्यादा स्पीड पर नहीं चलाया जा सकता... छत्तीसगढ़ में किरंदुल वाली लाइन पर 2 खाली मालगाड़ियों को एक साथ जोड़कर कई वर्षों से चलाया जा रहा है, क्योंकि उधर पूरे दिन में बहुत कम यात्री गाडियाँ चलती हैं...



 

अब 2 या 3 या 4 ट्रेनों को एक साथ जोड़ने का फायदा क्या है???... 251 डिब्बों वाली शेषनाग ट्रेन में 4 मालगाड़ियाँ एक साथ लगी थीं और 8 इंजन लगे थे और 4 इंजनों में लोको पायलट भी थे... तो इसका फायदा क्या हुआ??... यह कोस्ट इफेक्टिव कैसे हुई??... इस पर चर्चा करते हैं...



 

लोको पायलटों और गार्डों का एक फिक्स टाइमटेबल होता है, जो वीकली बेसिस पर बनता है... उनका रोज का शेड्यूल फिक्स होता है... उन्हें सप्ताह में 48 घण्टे ड्यूटी करनी होती है... किसी दिन 12 घण्टे की ड्यूटी भी हो जाती है और किसी दिन 4 घण्टे की भी होती है... कुल मिलाकर सप्ताह में 48 घण्टे की होती है... उन्हें किस दिन कौन-सी ट्रेन कहाँ से कहाँ ले जानी है, यह पहले से निश्चित रहता है...



 

शेषनाग ट्रेन के केस में... ये 4 अलग अलग ट्रेनें थीं... इनके लोको पायलटों और गार्डों को ये ट्रेनें अलग अलग समय पर भिलाई से कोरबा ले जानी थीं... कोरबा जाने के बाद उन्हें अन्य ट्रेनों को कहीं और ले जाना था... यह सब पहले से ही फिक्स होता है... 251 डिब्बों वाली शेषनाग ट्रेन को चलाने के लिए 2 लोको पायलट और एक गार्ड पर्याप्त थे, लेकिन अपने टाइमटेबल के अनुसार बाकी लोको पायलटों और गार्डों को भी कोरबा पहुँचना जरूरी था...



 

यही केस इंजनों का होता है... खाली 251 डिब्बों वाली ट्रेन को एक इंजन भी चला सकता था, लेकिन 8 इंजन क्यों लगाए??... इंजनों का भी टाइमटेबल फिक्स होता है... किस इंजन को कब कौन सी ट्रेन कहाँ से कहाँ ले जानी है, यह फिक्स होता है... कोयले से लदी 50 डिब्बों वाली फुल्ली लोडेड ट्रेन को खींचने के लिए अमूमन 2 इंजन लगाए जाते हैं... वापसी में एक इंजन ही पर्याप्त होता है, लेकिन उस दूसरे इंजन को भी वापस भेजना होता है...



 

शेषनाग 4 ट्रेनों का सेट था... जाहिर है कि 8 इंजन हुए... पूरी खाली ट्रेन को खींचने के लिए एक ही इंजन पर्याप्त होता, लेकिन बाकी इंजनों को भी तो वापस पहुँचाना है... या तो ट्रेन के साथ जोड़कर वापस भेजते... या केवल इंजनों को बाद में दौड़ाते... रेलवे ने ट्रेन के साथ ही भेज दिए...



अब सवाल यह उठता है कि जब एक ही इंजन पूरी ट्रेन को खींच सकता है, तो बाकी इंजनों को क्यों on रखा गया??... बाकी इंजनों को बंद क्यों नहीं किया गया??... बाकी इंजनों को on करके बिजली की एक्स्ट्रा खपत क्यों की गई??...



 

पूरी ट्रेन यानी सभी डिब्बों और इंजनों का एक निश्चित वजन होता है... इस वजन को खींचने के लिए निश्चित एनर्जी की आवश्यकता होती है... वह एनर्जी बिजली के तारों से इंजन को मिलती है... अगर एक इंजन पूरी ट्रेन और बाकी इंजनों को खींचता, तब भी उतनी ही एनर्जी लगती जितनी सभी इंजन मिलकर लगा रहे हैं... इससे एनर्जी तो उतनी ही खर्च हो रही है, लेकिन इंजनों पर लोड कम हो जाएगा...



अब आखिरी सवाल... शेषनाग जैसी ट्रेनों का भविष्य क्या है???...



 

शेषनाग का भविष्य ज्यादा उज्ज्वल नहीं है... यह ट्रेन मुंबई हावड़ा मेनलाइन के एक हिस्से में चलाई गई... यह लाइन सामान्य परिस्थितियों में यात्री गाड़ियों से भरी होती है... कदम कदम पर ये यात्री गाडियां मालगाड़ियों को ओवरटेक करती हैं... शेषनाग को कोई ओवरटेक नहीं कर सकता... कारण हमने बता दिया है... इससे यात्री गाड़ियों को शेषनाग के पीछे धीरे धीरे चलना होगा...



 

दूसरा कारण है कि शेषनाग जैसी ट्रेनों पर ज्यादा ध्यान देना पड़ता है... खासकर क्रॉसिंग और ओवरटेक के समय... किसी व्यस्त रूट पर जहाँ ट्रैफिक कंट्रोलर के पास बहुत ज्यादा काम होता है, वहाँ एक्स्ट्रा लोंग ट्रेन को हैंडल करना टेढ़ा काम होगा... अगर कभी भूलवश कंट्रोलर ने शेषनाग को सामान्य लंबाई की ट्रेन समझ लिया, तो दुर्घटना हो सकती है...



 

आजकल यात्री गाडियाँ न के बराबर चल रही हैं... तो रेलवे ने एक प्रयोग किया है... यह प्रयोग सफल भी रहा है... तो भले ही व्यस्त मार्गों पर इसका अच्छा भविष्य न हो, लेकिन डेडिकेटिड फ्राइट कॉरिडोर में इसका भविष्य उज्ज्वल हो सकता है...



 

एक्स्ट्रा लोंग ट्रेनों में ब्रेक लगाने के लिए एयर प्रेशर मेनटेन करना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है... शेषनाग और सुपर एनाकोंडा जैसी ट्रेनों में एयर प्रेशर मेनटेन करने का भी प्रयोग किया गया होगा... इसके इफेक्ट की स्टडी की गई होगी... अलग अलग जगहों पर कितना कितना प्रेशर पहुँच रहा है, यह भी देखा गया होगा... केवल एक इंजन से एयर प्रेशर पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और बीच में इंजन लगाने से क्या प्रभाव पड़ रहा है, इसकी भी गहनता से जाँच की गई होगी... इससे जो रिजल्ट निकलेगा, उससे भविष्य में कुछ अच्छा हो सकेगा...



 

ट्रैक्शन लोड की स्टडी की गई होगी... जब एक सेक्शन में ज्यादा ट्रेनें आ जाती हैं, तो ज्यादा लोड होने के कारण बिजली के तारों और इससे सम्बंधित सिस्टम में ओवरलोड उत्पन्न हो जाता है और कई बार ओवरलोड की वजह से लाइन भी फेल हो जाती है... कई बार ट्रेनें रोककर ओवरलोड खत्म किया जाता है...



तो जब शेषनाग यानी 4 ट्रेनें एक ही सेक्शन में आ जाती हैं, तो ओवरलोड पर क्या असर पड़ता है, इसकी भी स्टडी की गई होगी... हो सकता है कि ट्रैक्शन विभाग ने अपने सिस्टम को अपग्रेड भी किया हो...



कुल मिलाकर शेषनाग ट्रेन स्थायी ट्रेन नहीं है, लेकिन इससे जो नतीजे निकलेंगे, उनसे कुछ अच्छा ही होगा...



 

बाकी जिसे रेलवे का कुछ भी नहीं पता, वे गालियाँ देते रहेंगे...