14 साल पहले इसका मरना ऐसा था

||14 साल पहले इसका मरना ऐसा था||


- राजा कीर्ति शाह ने बनाया यह कौशल दरबार जिसे नया

दरबार कहते थे





-14 साल पहले इसका मरना ऐसा था जैसे सगी बड़ी दीदी नहीं रही हो





--------------------------------------------------




इससे पहले राजाओं का घर पुराना दरबार होता था राजा कीर्ति शाह ने इसे बनाया था। वह राजाओं में आधुनिक था। इसका नाम दिया कौशल दरबार जिसे नया दरबार कहते थे। सच कहूं इस जगह में मैं करीब एक दर्जन बार गया था। यह ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर टिहरी की सबसे ऊंची जगहों में एक स्थान होता था। मेरे टाइम पर यहाँ बांध के सरकारी दफ्तर आ गए थे। कमरे ऊंचे ऊंचे 30, 40 फुट के देखे मैंने चौड़े 50, 60 फ़ीट तक के।पार्किंग भी थीं यहाँ।

 

फिर सीढ़ीयों से चढ़ कर जाते थे यहाँ। 14 वर्ष बाद भी हमारी यादों में यह इमारत है चाहे टूटी हुई है फिर भी दिल और दिमाक से जुड़ी हुई हैं। राजमाता महिला कॉलेज इसके समीप नीचे था। यहाँ से भागीरथी नदी देखने पर रींग आती थी। और टिहरी शहर ऐसा दिखता था जैसे मसूरी राजपुर दिखता है आज।सामने एशिया का सबसे ऊँचा बांध का निर्माण चल रहा होता था। क्ले और शेल भराई। नर सिंह राव ने अनुमति दे दी थी।और ठेकेदार भी कॉफर डैम के लिए अपने ही आंध्रा से भेज दिये थे। मशीनों की गड़गड़ाहट से कुछ हिस्सा डिस्टर्ब रहता था।



 

पहले राजा सुदर्शन शाह लेकर कीर्ति शाह का आधा कार्यकाल पुराना दरबार में बीता। अपनी पढ़ाई की भूते ज्ञान के बूते उन्होंने एक नया दरबार विकसित किया। इस चित्र को डूबे हुए 14 साल हो गए हैं, पानी घटता

है तो इस तरह दिखता है। बढ़ता है तो डूब जाता है और समुद्र दिखता है लेकिन इसकी आकृति को देने वाले व्यक्ति को सलाम। हमारी यादों को कम से कम यह चित्र जीवित तो कर रहा है। विकास होना चाहिए, मैं भी आधुनिक विकास के पक्ष में हूँ। जब इन तस्वीरों देखता हूं यह एहसास कराती हैं जैसे पीठी की बडी दीदी मर गई हो। उसकी बार-बार याद आती है टेहरी शहर कि इन्हीं गतिविधियों को लेकर मन कभी अशांत हो जाता है लेकिन फिर भी वह मेले थौले याद आते हैं।

 

कृष्णा कैंटीन बस अड्डे में मिठाइयों और लस्सी कि वह खुश्बू बहुत याद आती है। और बसों में चलने से पहले जोर से संबोधित करते हुए मुसाफिरों से ..... घनसाली, चमियाला, बूढाकेदार, लंबगांव , चंबा, कदूखाल, श्रीनगर, मसूरी, कीर्तिनगर, गजा, थत्यूड़, अंजनीसैंण, देवप्रयाग, के नाम चीखना चिल्हाना चलो चलो याद आता है।



 

नया दरबार का रास्ता भादूकीमगरी के बैंड से जाता था। हमारे जमाने में। पुराना चना के खेतों से होता होगा।

भादू तो बहुत बाद का है लेकिन भूगोल यही है जिस पर मैं गया हूँ। मैं 1994 में टिहरी आया उच्च शिक्षा के लिए, उससे पहले मैं गांव और उसके कस्बे के इंटर कालेज में था। मैं 2008 में देहरादून आया। मैं अभी भी जाता रहता हूँ गांव क्योंकि मेरे माता, पिता, दादी गांव में रहते हैं। भले हमारा गांव ब्लॉक तहसील मुख्यालय हो। फिर भी टिहरी टिहरी था। इस शहर का मुकाबला नहीं है। श्रीनगर हो सकता है।

 

बस से उरतरे ही टिहरी की खुश्बू मिल जाती थीं। इसी में जीते थे। सब लोग। खुश रहते थे। कई पीढ़ियों ने देखा इसे। यह मर कर भी जिंदा है.