आधी आजादी

||आधी आजादी||



आजादी को चले चूमने वो कैसे मस्ताने थे, 
राजगुरू, सुखदेव भगतसिंह के जैसे दीवाने थे।
जलनेे की परवाह नहीं थी, ऐसे वो परवाने थे,
देश उन्हें सबसे प्यारा अर खुद से वो बेगाने थे।
देख गुलामी की जंजीरें, खून रगों में खौल उठा,
नहीं सहेंगे और गुलामी, बच्चा-बच्चा बोल उठा।
भूल गये सारे सपने, वो अपना यौवन भूल गये,
बस आजादी याद रही अर सारा जीवन भूल गये।
नमन आज उन वीरों को, जिनको ये मिट्टी प्यारी थी,
हमें स्वतंत्र कराने को, जीवन की बाजी हारी थी।
सन् उन्नीस सौ सैंतालीस को देश मेरा आजाद हुआ,
दीप जला आशाओं के नवजीवन का आरंभ हुआ।
सपने वो पूरे होंगे जो देखे थे दीवानोें ने,
वतनपरस्ती में घर उनके शामिल हुए वीरानों में।
चैाहत्तर की अब हुयी आजादी, फिर भी अधूरी लगती है। 
देश पे मिटने वालों के सपनों से दूरी लगती है।
कब होगा अंत विषमताओं का, कब पीड़ मिटेगी ये मन से,
कब संविधान की सारी बातें लागूं होंगी, जन-जन पे।
कब सुधार आयेगा जनता और शासन के सम्बन्धों में,
कब होंगे ये नियम समान, अमीर गरीब के धन्धों में।
समानता का अधिकार मिला, सामाजिक दूरी लगती है, 
सब बातों से पहले मुझको ,  ये बात जरूरी लगती है।
क्यों भेदभाव करते इतना, हम अपनी ही संतानों में, 
बेटा तो अपना वंशज है, बेटी शामिल बेगानों में।
जब बेटी नहीं सुरक्षित हो, बाहर घर के खतरा है डोल रहा,
फिर बेटी पढाओं बेटी बढाओं इन नारों का क्या मोल रहा।
क्यों आज भी बेटी चिन्तित है, अपनों में अर बेगानों में,
बेटी भी तो  शामिल थी आजादी के अफसानों में।
सुनकर बेटी की कथा-व्यथा,  हालातों पे दिल रोया है,
जिनके हाथों में शासन है, संवेदन उनका खोया है।
आजाद हुए वर्षोे बीते, पर आजादी कम लगती है,
सब बातों से पहले मुझकों ये बात जरूरी लगती है।




BY - BHARTI AANAND