कुदरत तेरा क्या कहना! औषधी भी और सब्जी भी


||कुदरत तेरा क्या कहना! औषधी भी और सब्जी भी||


यहां हिमालय की ऐसी प्रजाति से रू-ब-रू करवाने जा रहे है जो सब्जी के साथ-साथ औषधी का भी काम करती है। जिसे स्थानीय लोग लिंगड़ा कहते है। लिंगड़ा का बोटनिकल नाम है fiddle head fern।


वैसे भी हिमालय निवासियों की आदत में ही है कि वे लिंगड़ा प्रजाति की सब्जी उस मौसम में जरूर खाते है। मौजूदा कोरोना काल के समय में लिंगड़े की आवश्यकता और अधिक बढ जाती है। क्योंकि लिंगड़े में औषधीय गुण जो पाये जाते है।


जी हां! हम बात कर रहे है जंगली सब्जी लिंगड़ा की। लिंगड़ा अमूमन हिमालय राज्यों में जरूर मिलता होगा। मगर उत्तराखण्ड में तो यह लिंगड़ा हर किचन की शोभा बढा रहा है। यही नहीं लिंगड़े की अब कई प्रकार रेसिपी सामने आ रही है।


लिंगड़े की महत्ता और उसके उपयोग की जानकारी देने के लिए हमारे साथ जुड़े हैं गढभोज अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल।




हमने कश्मीर से कन्याकुमारी तक साईकिल यात्रा की है और देशभर में अलग-अलग पैदल यात्राऐं भी की है। इस दौरान देशभर में अलग अलग राज्यों में स्थानीय पकवान से रू-ब-रू हुए हैं। यहीं से विचार आया कि पहाड़ के लिंगड़े की सब्जी को क्यों नहीं बाजार में उतारा जाये। यह लिंगड़ा प्रजाती पहाड़ में बरसात के दौरान बहुतायात में पैदा होता है। इसका सर्वाधिक उपयोग करना है। क्योंकि पहाड़ के लोगो की यह परम्परगात सब्जी है। लिंगड़े को गढभोज अभियान के तहत प्रमुख सब्जीयों में सुमार करना है। लिंगड़ा इस राज्य में प्राकृतिक रूप से प्रचूर मात्रा में पैदा होता है। अब इसका वैल्यूएड किया गया है। जिसकी बाजार में अच्छी मांग है।)


-द्वारिका प्रसाद सेमवाल .........



यहां लिंगड़ा प्रजाति की पौध बरसात मौसम के आरम्भ में उगती है। जो सर्दी आने तक रहती है। बरसात में इसकी मात्रा बहुतायात में होती है। उच्च हिमालय शिखर की गहरी घाटियों में लिंगड़ा प्रजाति स्वस्र्फूत बहुत अधिक मात्रा में उग आता है। लिंगड़े की बनावट भी बहुत ही सुन्दर आकृति बनाती है। लगभग एक फिट से दो फिट ऊंची पौध, गहरे हरे रंग और शिखर से रिंगनुमा रूप लिए लिंगड़ा, अपने को जंगल की अन्य प्रजतियों से अलग करती है। इसलिए लोग लिंगड़े को आसानी से पहचान जाते है। यह गहरी घाटियो व जहां मौस्चराई हो, वहां लिंगड़े की स्वस्थ पौध अधिक मात्रा में मिलती है। इसके पकवान से और कई फायदे है। गढभोज अभियान ने लिंगड़े को बाजार में उतारने के प्रयास किये है। पिछले एक वर्ष में गढभोज अभियान ने गढबाजार के मार्फत बिना प्रचार-प्रसार के लिंगड़े के अचार से ढाई लाख रूपय की आमदानी की है।


लिंगड़े पर कुछ अनुसंधान भी हुए है। इन शोधो में बताया गया है कि लिंगड़ा की सब्जी आदि पकवान अति स्वास्थ्यवर्धक है। पर्वतीय शोध केन्द्र हेमवन्ती नन्दन बहुगुणा गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल के निदेशक डा॰ अरविन्द दरमोड़ा बता रहे हैं कि लिंगड़े में प्रोटिन की मात्रा कैसे पाई जाती है .........




लिंगड़ा एक खास प्रकार की वन औषधी है। लिंगड़े की सब्जी लोगो की परम्परा में है इसलिए यह बताना कठीन है कि कब से लोग इसकी सब्जी खा रहे है। मौजूदा समय में लिंगड़े पर कई अनुसंधान हुए है। जिसमें पाया गया कि लिंगड़े वन प्रजाती में प्रोटिन, बिटामिंस और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रचूर मात्रा में पाई जाती है। इसकी सब्जी खाने से आंखो की रोशनी और शूगर को नियन्त्रित करना। आजकल लिंगड़े का अचार खूब प्रयोग किया जा रहा है। इसके अचार खाने से लोग अपने को सर्दी-जुकाम से सुरक्षित पाते है।


-  डा॰ अरविन्द दरमोड़ा ..............



आमतौर पर उत्तराखण्ड हिमालय के निवासी लिंगड़े की सब्जी ही खाते थे। अब गढभोज ने लिंगड़े की रेसिपी तैयार कर दी है। इस वजह से आजकल देहरादून की हर गली मुहल्ले में जाने वाली सब्जी की ठेलियों पर लिंगड़ा खूब बिक रहा है। जो लोग लिंगड़े को बाजार पंहुचा रहे हैं, उनका भी आजकल यह रोजगार ही बना हुआ है।


लिंगड़े की अलग-अलग रेसिपी को तैयार करने वाले गढभोज अभियान के मुख्य सैफ टिकाराम यहां बता रहे है ..........




मै घर से बहुत दूर होटल लाईन में काम करता था। वापस घर आकर गढभोज अभियान से जुड़ा। लिंगड़े की अलग-अलग रेसिपी तैयार की है। चीली लिंगड़ा, लिंगड़ा सूप, लिंगड़े का अचार, लिंगड़े की सब्जी आदि। हम कोशिश कर रहे हैं कि लिंगड़े की सब्जी सालभर तक लोगो को खाने को मिले।


- टीकाराम ........



उत्तराखण्ड के गांवो में लिगड़े की सब्जी को लोग बहुत ही स्वादिष्ट मानते है। जहां लोग एक तरफ अपने पशुओ के लिए चारा-पति एकत्रित करते हैं तो दूसरी तरफ घर के लिए लिंगड़े को एकत्रित करना नहीं भूलते है। 15 अप्रैल से 15 सितम्बर तक लोग लिंगड़े की सब्जी का खूब स्वाद लेते है। हर पकवान के साथ एक सब्जी लिंगड़े की अवश्य ही बनती है। गृहणियो की पंसदीदा सब्जीयो में से प्रमुख है, लिंगड़े की सब्जी। यहां जानकारी दे रही है गढभोज अभियान से जुड़ी भारती आनन्द .....




लिंगड़ा हमारी परम्परागत सब्जी है। मेरी दादी-नानी से लेकर अब तक इसकी सब्जी को लोग खाते-बनाते आये है। जंगल में घास-पति लेने जब महिलाऐ जाती है तो लिंगड़ा की सब्जी जरूर लेकर आती है। लिंगडा हमारे क्षेत्र में ऐसे वक्त में पैदा होता है, जिस वक्त खेती किसानी का काम बहुत अधिक होता है और अन्य सब्जीयां उस वक्त नहीं होती है। काम के बोझ के साथ-साथ लिंगड़ा की सब्जी रोटी, चावल और अन्य पकवान के साथ सब्जी का बखूबी काम करता है। रोटी के साथ खाओ या चावल के साथ। खेती किसानी से जुड़े लोग लिंगड़ा की सब्जी बड़े चाव से खाते है। फ्राई, स्टीम आदि करके लिगड़े की सब्जी पकाई जाती है। यह पहाड़ की बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी है। आज लिंगड़े को कई प्रकार से बना रहे है, परोस रहे हैं। अब मोमो के साथ भी लोग लिंगड़े का स्वाद ले रहे है।


- भारती आनन्द ........  



इस तरह से यदि लिंगडे को विधिवत रूप से बाजार में उतारा गया तो उत्तराखण्ड के 16 हजार गांवो की 20 से 25 फिसदी जनसंख्या, लिंगड़े से रोजगार कमा सकती है। यहां बता रहे हैं गढभोज अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल ........




प्राकृतिक रूप से उगने वाले लिंगड़े को हर थाली का हिस्सा बनया जायेगा। इसलिए देहरादून में गढबाजार की स्थापना की गई है। इसे रोजगार का जरीया बनाने की कोशिश है। हर घर लिंगड़े का अचार बन रहा होगा, हर घर व हर होटल, ढाबा, रेस्टोरेंट की थाली में लिंगड़े की सब्जी अनिवार्य होगी। देहरादून के गढबाजार के मार्फम यह कार्य आगे बढाया जायेगा। ऐसा विचार है कि राज्य के 25 फीसदी लोग लिंगड़े को रोजगार का जरीया बनायें। ऐसा प्रयास किया जा रहा है।


- द्वारिाक प्रसाद सेमवाल .............