विरही गंगा - नन्दाकिनी

||विरही गंगा||


विरही को कई नामों से जाना जाता है। यह सप्तकुण्डी मिश्रित धारा है। त्रिशूल शिखर के उत्तरी ढाल में समुद्रतल से लगभग 5200 मी० ऊँचाई पर सिंगी बुग्याल क्षेत्र के हिमनदों के समीप सात जलकुण्ड बने हैं। यहां से यह नदी निकलती है। ईराणी गांव के बाद इसे वीरी गंगा के नाम से पुकारा जाता है। इस नदी का सम्पूर्ण प्रवाह मार्ग लगभग 38 किमी० का है जो पूर्व से पश्चिम दिशा को है। चमोली से लगभग 9 किमी० पूर्व यह अलकनन्दा में मिलती है।


नन्दाकिनी


नन्दाकिनी नदी का मूल स्रोत नन्दा घुघटी एवं त्रिशुल पर्वत की शृंखलाओं के मध्य उत्तर पूर्व से लेकर पश्चिम दिशा तक फैले अनेक हिमनदों को माना जाता है। शिला समुद्र और होमकुण्ड का नाम इनमें अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है।


नन्दाकिनी की प्रारम्भिक जलधाराओं में प्रमुख रूपगंगा है, जो रूपकुण्ड से आती है, साथ ही हरसिंग गाड़, तिमुनी गाड़ जैसी अन्य जलधाराएं हैं, जो सप्तकुण्ड से प्रवाहित होती हैं। इसके अतिरिक्त नन्दाकिनी में मिलने वाली जल धाराएँ जेठागाड़, गौंडियागाड़, मालागाड़, मौरालगाड़, मोखगाड़, माद्रागाड़, चुफलागाड़, पुनेरागाड़, कर्णगदेश एवं मत्वानी गधेरा है। नन्दाकिनी की सबसे बड़ी सहायक जलधारा विनायक गंगातोली खरक से निकलकर उत्तर वाहिनी होकर घाट में नन्दाकिनी से मिलती है।


 


स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में मानव संसाधन विकास मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल निशंक की किताब ''विश्व धरोहर गंगा''