शिक्षण का एक तरीका यह भी

शिक्षण का एक तरीका यह भी


जब मैं पहली बार बालवाड़ी के संचालन के लिए मुनौली गाँव के केन्द्र में गयी तो पूर्व शिक्षिका साथ में थी। उन्होंने बच्चों को प्रार्थना करवायी, भावगीत किया। मैंने सोचा कि ये शिक्षिका तो बच्चों को पढ़ा नहीं रही है। नाच-गाना करा रही है। मैं ये सब देख रही थी। दूसरे दिन जब मैं अकेले ही बालवाड़ी में पहुँची तो सोच रही थी कि बच्चों को नाच-गाना कैसे कराऊँगी?


हिम्मत जुटाकर मैंने बालवाड़ी के कमरे की साफ-सफाई शुरू की। झाडू लगाया । तब तक बच्चे नहीं पहुंचे थे। जब बच्चे आये तो मुझे देखकर डरने लगे। अपनी माँ से घर जाने के लिए जिद करने लगे। मैंने प्यार से उन्हें भीतर बुलाया। जब वे केन्द्र के अन्दर आकर बैठे तो सभी मेरी ओर आशापूर्ण दृष्टि से देखने लगे। 


मैंने बच्चों को प्रार्थना कराई। उसके बाद भावगीत किया। बच्चे खुश होकर गीत गाने लगे। तब मैंने जाना कि बालवाड़ी में बच्चों का शिक्षण खेल-खेल में होता है। अब बच्चों के साथ नाच-गाना करना भी अच्छा लगता है शुरूआत में भावगीत के समय बच्चों ने मेरी बहुत मदद की। जहाँ पर मैं स्वयं भावगीत के बोल भूल जाती, वहाँ पर बच्चे ही उसे पूरा कर देते थे। भावगीत तो मैंने बच्चों से ही सीखे। बच्चे भावगीत को इतनी लगन और उत्साह से करते कि किसी का मन भी नाचने को करने लगेबालवाड़ी के संचालन से मैंने बहुत ज्ञान अर्जित किया। बच्चों के साथ समय कैसे बीत जाता, पता भी नहीं चलता है।