# गंगा गंगा, अविरल अविरल खेलो #

गंगा गंगा, अविरल अविरल खेलो



महामहिम ने भी संसद में अपने अभिभाषण में 2022 तक गंगा को अविरल और निर्मल बनाने का लक्ष्य रखा है। गंगा के साथ ही यमुना, नर्मदा, कावेरी और गोदावरी सहित अन्य नदियों पर सरकार इसी तर्ज पर काम करेगी। अब देखना यह है कि सरकार इस पर कितनी संवेदनशील होती है, जो समय के गर्त में है। देशभर में नदियों के बहते पानी का जो शोषण विकास के नाम पर हो रहा है वह भी किसी से छुपा नहीं है। किन्तु यहां तो महामहिम ने कह दिया कि 2022 तक गंगा व उसकी सहायक नदियां अबिरल बहनी चाहिए। अब देखना यह है कि सरकार महामहिम की बात पर कितनी अमल करती है।


बता दें कि गंगा से जुड़े तमाम मुद्दों पर लंबे आंदोलनों, सरकारी आश्वासनों, स्थानीय अदालतों से लेकर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय तक और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के आदेशों, निर्देशो की एक लम्बी सूची है। फिर भी गंगा अपने उद्गम स्थल से लेकर गंगासागर तक कभी मरती है, कभी अवरूध होती है और कभी इतनी मैली हो जाती है कि गंगा का पानी आचमन के लायक भी नहीं रहता है। इधर गंगा अपनी दोनों मुख्य धाराओं के उद्गम के पास ही बांध परियोजनाओं में बांध दी गईं है। अलकनंदा गंगा को विष्णुप्रयाग बांध और भागीरथी गंगा को मनेरी भाली से लेकर बड़े विशालकाय टिहरी बांध ने बांध रखा है। गंगा व उसकी सहायक नदियां लगभग 56 बड़े बांधों ने जकड़ रखी है।


उल्लेखनीय हो कि देश में ही नहीं बल्कि दुनियां में गंगा के अलावा ऐसी कोई नदी नहीं है जिसके बारे में इतनी व्यापक चर्चा होती होगी। या जिसको राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया गया होगा। भारतीय समाज गंगा को अपने लिए उद्धारक मानते है और गंगा के प्रति आस्थावान बने रहते हैं। दुनियां की आबादी के पांचवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले देश के प्रधानमंत्री अपने आपको गंगा पुत्र मानते है। उसके किनारे से ही सांसद बन करके वे देश के सर्वोच्च पद पर भी पहुंचे है। मगर गंगा की हालात बदस्तूर बनी है। लगभग 40 करोड़ लोगों के जीवन के साथ प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहने वाली गंगा अध्यात्मिक-आर्थिक-प्राकृतिक सौंदर्य के लिये भी जानी जाती है, साथ ही गंगा नदी भारतवर्ष के एक बड़े क्षेत्र की पारिस्थितिकी में बड़ी भूमिका अदा करती है।



मौजूदा समय में देश के प्रथम नागरिक यानि हमारे महामहिम ने एक सामान्य नागरिक के हैसियत से गंगा के दर्द को समझा है और अपने अभिभाषाण का मुख्य हिस्सा बनाते हुए 2022 तक गंगा को अबिरल बनाय जाने की बात कही है। इतिहास में दर्ज है कि पूर्व प्रधानमंत्री  राजीव गांधी के द्वारा गंगा पर पहली बार सफाई की बात शुरू की गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया था।


इधर स्वामी सानंद यानि प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के उपवास के कारण मनमोहन सिंह सरकार ने भागीरथी गंगा को 100 किलोमीटर तक अक्षुण छोड़ने के लिए लोहारीनाग-पाला, पाला-मनेरी और भैरों घाटी की दो जलविद्युत परियोजनाऐं रोक दी थी। गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के साथ एक प्राधिकरण भी बनाया गया। जबकि इसके चलते देहरादून की वन्य जीव संस्थान ने उत्तराखण्ड में निर्माणाधीन 24 बांधों को रोकने की संस्तुति दी थी।


दूसरी ओर राष्ट्रीय पर्यावरणीय अपीलीय प्राधिकरण ने 2008 में अर्थशास्त्री भरत झुंझुनवाला व पर्यावरण कार्यकर्ता विमलभाई की अपील पर अलकनंदागंगा पर निर्माणाधीन कोटली भेल चरण एक-ब को निरस्त किया गया। इसके अलावा बांध प्रभावितों को मुआवजा और पर्यावरणीय शर्तों के उल्लंघन पर बांध कंपनियों पर र्जुबाना भी अदालतों ने लगाये। कई जगहो पर लोगो ने बांधो की असलियत समझते हुए बांध के काम को रोका। भूस्वामी संघर्ष समिति ने पिंडर गंगा पर प्रस्तावित देवसारी बांध को लगभग 10 साल से रोक कर रखा है। मंदाकिनी गंगा पर गंगाधर नौटियाल के नेतृत्व में लंबा आंदोलन चला। सुशीला भंडारी जैसी संघर्षी महिला आज भी बांध के विरोध में आन्दोलनरत है।


गौरतलब हो कि एक तरफ गंगा पर बांधो का खतरा बना है तो वहीं दूसरी तरफ खनन जैसे कार्य गंगा और उसकी सहायक नदियों पर जारी है। हरिद्वार में मातृ सदन के स्वामी शिवानंद गंगा में हो रहे खनन के खिलाफ लंबे समय से आन्दोलनरत है। कई बार ऐसे आन्दोलनो की मानवीय मांगो पर न्यायालयो ने भी संज्ञान लिया, पर जिम्मेदार प्रशासन ही खनन माफिया के सामने नतमस्तक दिखाई देता है। परिस्थिति यह है कि बांध की लड़ाइयों में भी सरकारी पक्ष हमेशा बांध कंपनियों के साथ ही खड़ा नजर आता है। फिर भी वर्तमान सरकार ने 22 हजार करोड़ की नमामि गंगा परियोजना शुरू की है। साथ ही गंगा पर बड़े क्रूज, मालवाहक जहाज भी चलाने की तैयारी वर्तमान सरकार कर रही है। बंदरगाह बन चुके हैं। गंगा पर बैराज को लेकर बिहार, बंगाल व उत्तर प्रदेश के काफी संगठन सक्रिय हुए है। उदाहरणस्वरूप बिहार के मुख्यमंत्री ने फरक्का बैराज खोलने की मंशा जाहिर की थी, मगर राजनीतिक परिस्थितियां बदलते ही जब वे केंद्र सरकार के साथ आए, तब से वे भी इस पर मौन हो गये हैं।


चुनाव के मद्देनजर अर्धकुंभ पर इलाहाबाद में बहुत सुन्दर मार्केटिंग के साथ अर्धकुंभ नगर बना और गंगा में पानी उपलब्ध कराया गया। लाखों-करोड़ों लोग गंगा में नहाकर पाप धोने की संतुष्टि प्राप्त करके वापस लौटे और अपना वोट वर्तमान सरकार को दे दिया। हां यही सबसे बड़ी उपलब्धि गंगा पर रही है। मीडिया की आभासी दुनिया ने भी इसमें बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। अर्धकुंभ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुंभ प्रचारित किया गया। मगर अब गंगा की प्रदूषण की स्थिति इलाहबाद या प्रयागराज में क्या है यह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अच्छी तरह से बता सकता है।


अगस्त 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं संज्ञान लेकर गंगा पर बन रहे बांधों का आपदा में क्या हिस्सा था? इस पर एक समिति बनवाई गई। इस समिति ने उत्तराखण्ड राज्य की नदियों पर बन रहे बांधो को आपदा का स्रोत बताया। सरकार ने इस रवि चोपड़ा समिति की सिफारिशों को कमजोर करने के लिए एक नई समिति बनावा दी। इसके अलावा केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा भी एक समिति बनाई गई। किंतु पिछले 05 वर्षों में जल संसाधन मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय व ऊर्जा मंत्रालय एकमत होकर अब तक कोई शपथ पत्र अदालत में प्रस्तुत नहीं कर पाये। न्यूनतम जल प्रवाह के लिए पूर्व के जल संसाधन मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन जारी किया था। कई बार इस मंत्रालय के तत्कालीन मंत्री नितिन गडकरी ने अपने भाषणों और व्यक्तिगत रूप से भी कहा कि सरकार का निर्णय है कि गंगा पर नए बांध नहीं बनेंगे, जिन पर थोड़ा बहुत काम हो गया है उनको भी रोक दिया जाएगा।


गंगा पर बन रहे बांधो को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी फरवरी 2019 की अंत में बैठक करके 07 निर्माणाधीन बांधों की स्थिति देखने के लिए एक समिति गठित कर यथा स्थान भेजी थी। इस समिति की रिपोर्ट भी आज तक सार्वजनिक नहीं हो पाई। यहां तक कि पर्यावरण मंत्रालय ने इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय में शपथ पत्र दाखिल करना था, सो अभी तक नहीं हो पाया है। स्वामी सानंद के संकल्प के क्रम में 194 दिन के उपवास पर मातृ सदन के युवा सन्यासी ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद को भी 4 मई को जो पत्र सरकार द्वारा दिया गया है, उसके पीछे सरकार की यही मंशा बताई गई थी की वे गंगा की अबिरलता पर त्वरित विचार करने वाले हैं, जिस पर उन्होंने अपने उपवास को विराम दिया।


कुलमिलाकर यही कहा जा सकता है कि मौजूदा सरकार को महामहिम के अभिभाषण पर गौर करना होगा और गंगा की अबिरलता पर हो रहे कार्यो को महामहिम के अभिभाषण का हिस्सा बनाना होगा। अन्यथा गंगा की अबिरलता, निर्मलता जैसे कार्य सिर्फ शब्द बनकर ही रह जायेंगे।