हम हुए 26 के 

||  हम हुए 26 के || 



गणाई गंगोली में हम 1994 से 2016 तक निरंतर रहे। सहज आत्मीय सेवा का जीवन जिया। ख़ास उन दिनों महिलाओं के सन्गठन,स्वच्छता,पर्यावरण और छोटे बच्चों की बालबाड़ी एक जरूरी कार्य था। लम्बे समय में बहुत से प्रयोग किये। कुछ सफलता मिली तो काफी कार्यों में असफल भी हुए। देश भर के लोग सहयोगी रहते थे। स्थानीय स्तर पर उत्तराखंड सेवा निधि एक ऐसे सहयोगकर्ता रहे जिन्होंने कठिन समय में कार्य करने में हरेक मदद सम्भव बनाई।



पव्वाधार में भी 10 साल शिक्षा स्वास्थ्य भौतिक विकास का कार्य किया।
इसमें बड़ी भूमिका ग्रामीण महिलाओं ने निभाई। उनके महिला सम्मेलन स्वावलम्बी विकास में निर्णायक भूमिका निभाते रहे। किशोरी सम्मेलन बाल मेला भी लोकप्रिय रहे। ख़ुशी है अब भी कार्य निरंतर चल रहा है। यकीनन अगली पीढ़ी के हाथ में जागरण की मशाल देख प्रसन्नता हो रही है। साथ में ग्रामीण जीवन के संघर्ष से प्रदेश की राजनीति में गयी महिला विधायक जी को अभी भी महिलाओं के साथ बैठकर उनकी बातें और दिक्कतें सुनते देख बहुत अच्छा लगा।



महिलाओं ने सम्मेलन से पहले आने को बोला। हम अपनी दुनिया में मशगूल हैं। अब जाना सम्भव नहीं रहा। लेकिन जब सम्मेलन के बाद ये जानकारी मिली तो अपने भाव व्यक्त करने से रोक नहीं पाया। आज के स्वरूप को बनाने में पिछली पीढ़ी की अनेक महिलाओं,महिला कार्य कर्ताओं और जमीनी स्वयंसेवकों ने अत्यधिक मेहनत की थी। मानवीय जीवन में बदलाव लाने में अत्यधिक श्रम,बुद्धि,कौशल,भाव लगता है।


उत्तराखंड महिला परिषद ने इसे सम्भव बनाया है। यकीनन ये यात्रा अभी तब तक चलते रहनी चाहिए जब तक वास्तव में हमारा समाज महिलाओं को समान अवसर और समान सम्मान स्वाभाविक तौर पर देना न सीख जाये। महिलाओं की शारीरिक मानसिक सांगठनिक स्थिति से ही उस समुदाय का वास्तविक चित्र उभरता है जिसका वे भाग हैं। यकीनन अभी बहुत से क्षेत्र इसमें पीछे रह गये हैं। उम्मीद है इसके बहाने फिर पर्वतीय महिलाओं के मुद्दों को स्थान मिलेगा।